पंडित मदन मोहन मालवीय-ज्योतिष की नजरों में -भाग-4

कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनना 

                विकिपीडिया  में मालवीय जी की जीवनकथा में लिखा है की वे चार बार वर्ष 1909,1913 ,1919 व 1932 में कांग्रेस के प्रधान रहे तथा 1934 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी ! लेकिन कांग्रेस की आधिकारिक वेबसाइट www.inc.in/en में लिखा है कि ” on account of his services to the congress  he was elected its president in 1909,1918,1932,1933 but owing to his arrest by Government of India, he could not preside  over 1932&1933 sessions which had been banned ” 1909 व 1918 में मालवीय जी पर महादशा शनि की चल रही थी ! जन्मकुंडली व नवांशकुन्डली में शनि सप्तमेश(पदप्राप्ति का स्थान ) व दशमांश कुंडली में दशम स्थान के स्वामी होकर पदप्राप्ति की पुष्टि कर रहे हैं ! 1909 में अन्तरदशा बुध की व 1918 में अन्तरदशा 07 नवम्बर 1918 तक मंगल की व उसके बाद 13 सितम्बर 2021 तक राहु की थी ! बुध जन्मकुंडली में प्रतियोगिता के छठे स्थान में हैं तथा नवांश कुंडली में भाग्य के नवम स्थान में तथा दशमांश कुंडली में नवम स्थान में बैठ कर पदप्राप्ति के सप्तमेश से दृष्ट हैं ! इस प्रकार तीनो कुंडलिओं में अन्तरदशा नाथ  पदप्राप्ति की पुष्टि कर रहे हैं !अंतरदशानाथ  मंगल जन्मकुंडली में  दशमेश हैं ,नवांश कुंडली में नवमेश होकर सप्तमेश से दृष्ट व नीचभंग राजयोगकारक हैं तथा दशमांश कुंडली में लग्नेश होकर दशम स्थान  को दृष्टि दे रहे हैं तथा अपने उच्चकारक शनि से दृष्ट हैं ! इस प्रकार अंतरदशानाथ मंगल भी तीनो कुंडलिओं में पदप्राप्ति का संकेत दे रहे हैं !राहु लग्नकुंडली में प्रतियोगिता के छठे स्थान में हैं ,नवांश कुंडली में बारहवें भाव में सप्तमेश से दृष्ट हैं तथा दशमांश कुंडली में लग्न में बैठ कर पदप्राप्ति में सक्षम हैं !

                अब हम 1932 व 1933 की बात करते हैं ! विकिपीडिया में दी गई जानकारी के अनुसार सविनय अवज्ञा आंदोलन में 450 कांग्रेसी सदस्यों के साथ मालवीय जी को दिल्ली में 25 अप्रेल 1932 को गिरफ्तार कर लिया गया था ! 1932 -1933 के दोरान मालवीय जी पर बुध की महादशा थी ! अन्तरदशा 26 -04 -1931 से 25 -09-1932 तक चंद्र की व 25 -09 -1932 से  22 -09 -1933 तक मंगल की तथा उसके बाद 10 -04 -1936 तक राहु की थी ! महादशानाथ बुध व अंतरदशानाथ राहु व मंगल  की बात हम उपर कर चुके हैं ! चन्द्रमा लग्न कुंडली में षष्टेश गुरु व सप्तमेश शनि  के साथ हैं ,नवांश कुंडली में सप्तमेश से दृष्ट होकर द्वादश भाव में हैं तथा दशमांश कुंडली में आठवे भाव में नीच के होकर सप्तमेश से दृष्ट हैं ! द्वादश भाव के साथ छठा भाव भी काराग्रह का भी  माना गया है ! मंगल व् राहु भी लग्न कुंडली व् नवांश कुंडली में द्वादश भाव से भी  सम्बद्ध बना कर  एक साथ पदप्राप्ति व जेल प्राप्ति दोनों का संकेत दे रहे हैं ! 

मालवीय जी की मृत्यु

              मालवीय जी की मृत्यु 12 नवम्बर 1946 को हुई ! दशा थी केतु -शनि की ! लग्न कुंडली में केतु मृत्यु के बारहवे भाव में है तथा मारक शनि व् मंगल से दृष्ट है जबकि शनि मारक होकर द्वादश भाव को दृष्टि देकर मृत्यु की पुष्टि कर रहे हैं !नवांश कुंडली में भी केतु व् शनि का सम्बद्ध मृत्यु के द्वादश भाव में बना हुआ है !

       इसके साथ ही मालवीय जी की कुंडली की अंतिम किश्त पूरी हुई ! हमारा ये प्रयास आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताएं ! अगली बार सद्गुरु जग्गी वासुदेव या स्टीफेंस हाकिंग की कुंडली पर विचार किया जायेगा ! इस विषय में आपकी क्या राय है यह जानकर हमें ख़ुशी होगी !  

   

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