प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एन डी ए गठबंधन के लिए इस लोकसभा चुनाव में चार सो सीटें मांग रहे हैं। उनका कहना है कि अभी बहुत काम करना बाकी है। इस पर विपक्षी गठबंधन उन पर आरोप लगा रहा है की अगर इस बार श्री नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो यह आखरी चुनाव होगा और वे सत्ता में आने पर संविधान बदल कर उम्र भर सत्ता में बने रहेंगे। इस लेख में मैंने ज्योतिषीय दृष्टि से इस संभावना पर विचार किया है।
भारत गणराज्य की कुंडली 26 जनवरी 1950 को 10 :20 बजे देहली के हिसाब से बनाने का प्रचलन है। पाठकों के अवलोकनार्थ कुंडली नीचे दी जा रही है।संविधान संशोधन व सविधान के बारे में सभी बातों का ज्योतिषीय अध्ययन करने के लिए इस कुंडली का अध्ययन किया जाता है।संवैधानिक पदों पर बैठे माननियों के बारे में भी इसी कुंडली से विचार किया जाता है।
इस कुंडली में मंगल ,केतु और राहु लग्न के लगभग बराबर के अंशो पर हैं और तीनो ग्रह लग्न से सम्बन्धित हैं।जन्मकुंडली का दशम भाव हमारे कर्म का भाव होता है। एक गणराज्य की कुंडली में दशम भाव सरकार के कार्यों को दर्शाता है। जन्म कुंडली में दशम भाव और दशमेश सरकार के कार्यों की गुणवत्ता निर्धारित करते हैं।दशम भाव में बुध वक्री होकर बैठे हुए हैं। बुध चतुर्थेश और सप्तमेश हैं।चतुर्थेश और सप्तमेश का दशम भाव में बैठना अच्छा है। पर बुध (व) सातवें भाव से केतु युक्त मंगल से दृष्ट है। गणराज्य की कुंडली में सप्तम भाव घटक राज्यों को इंगित करता है। ग्रहों की इसी स्थिति के कारण यदा कदा घटक राज्यों से बागी स्वर सुनाई देते रहते हैं। दशमेश गुरु अपनी नीच राशि में षष्टेश सूर्य और अष्टमेश शुक्र के साथ एकादश भाव में है। एकादश भाव में सूर्य से अस्त होकर अपनी नीच राशि में होने के कारण गुरु भी मजबूत स्थिति में नहीं है। भारत गणराज्य की कुंडली की इसी ग्रह स्थिति के कारण भारत के कुछ घटक राज्यों से इसके संघीय स्वरुप के प्रति चिंता जनक स्वर उभरते रहते हैं। इसलिए भारत को एक ऐसे प्रधानमंत्री की आवश्यकता है जिसके दशम भाव में स्थित ग्रहों के कारण वह त्वरित , स्पष्ट और कड़े फैसलें लेने में सक्षम हो।
सौभाग्य से नवांश में गुरु उच्चाभिलाषी है हालांकि आठवें भाव में है और दशमांश में यह अपनी राशि में लग्न में है।
पाठकों के अवलोकनार्थ मैं भारत के स्वतंत्र होने की कुंडली भी नीचे प्रस्तुत कर रहा हूं। दोनों कुंडलियों में लग्न में लग्न के नजदीक के अंशों में राहु है।राहु छल ,कपट व प्रपंच दर्शाने वाला ग्रह है। शायद इसी कारण से हमारे देश में छल ,कपट व प्रपंच ज्यादा चलता है। दुर्भाग्य से ये अवगुण हमारे नेताओं का राष्ट्रीय चरित्र बन गए हैं। प्रसिद्ध ज्योतिषि श्री एम एस मेहता
व ज्योतिष गुरु श्री के एन राव ने हमारी छद्म धर्मनिरपेक्षता के लिए लग्न में स्थित राहु को ही कारण माना है।
उनके अनुसार गणराज्य की कुंडली में सष्टेश सूर्य व एकादशेश शनि में राशि परिवर्त्तन है ,एकादशेश छटे भाव में वक्री है ,दशमेश एकादश भाव में सष्टेष तथा अष्टमेश के साथ अपनी नीच राशि में है।नवमांश में भी एकादशेश बुध वक्री हो कर लग्न में शनि के साथ राहु -केतु अक्ष में है तथा सष्टेष मंगल से दृष्ट है Iगणराज्य की कुंडली में तीन ग्रह वक्री भी हैं और दशाक्रम भी शुभ नहीं है। ज्योतिषीय दृष्टि से यही कुछ कारण हैं जिनके कारण जिनके कारण भारत के संविधान में संशोधन होते रहते हैं।एकादशेश का वक्री होना ,एकादश भाव /एकादशेश पर बुरे ग्रहों का प्रभाव होना व हमारी छद्म धर्मनिरपेक्षता के कारण ही संविधान में बहुत से संशोधन तुष्टिकरण की निति के तहत किए गए हैं तथा बहुत से कानून बनाते समय बहुसंख्यक समाज की भावनाओं को नज़रअंदाज किया गया है।
भारत की सवैंधानिक व्यवस्था को सबसे बड़ा धक्का तब लगा था जब 20 जून 1975 को देश में आपातस्थिति लागु की गई थी। उस समय संवैधानिक कुंडली पर सूर्य -शुक्र की छिद्र -दशा थी। सूर्य सष्टेश व शुक्र अष्टमेश है। यह ज्योतिष का सर्वमान्य सिद्धान्त है कि सष्टेश की दशा में अष्टमेश की अंतर्दशा व अष्टमेश की महादशा में सष्टेश की अंतर्दशा शुभ फलदायी नहीं होती। 21 मार्च 1977 को चंद्र -चंद्र दशा में आपातस्थिति खत्म कर दी गई। चंद्रमा पंचमेश हो कर शुभ है पर केतु के साथ नक्षत्रपरिवर्तन योग में है और सप्तम भाव में है जो की एक मारक भाव भी है । इसलिए चंद्र अपने अंदर अशुभता लिए हुए है। 11 फरवरी 1977 को चंद्र -चंद्र -शुक्र (10 -02- 1977 से 01 -04 -1977 तक) दशा में राष्ट्र्पति श्री फखरुद्दीन अली अहमद का निधन हो गया।अगर गोचर की बात की जाए तो इमरजेन्सी के दौरान गुरु मीन व मेष में गोचर कर रहा था। यानि के जन्मस्थ राहू के ऊपर से और जन्मस्थ चंद्र से बारहवें भाव में और जन्मस्थ चंद्र के ऊपर से। गोचर में ये दोनों स्थितीयां शुभ नहीं हैं।अष्टकवर्ग में भी मीन राशि में 23 बिंदु व मेष राशि में 27 बिंदु हैं। शनि कर्क राशि में गोचर कर रहा था जो जन्मस्थ चंद्र से चतुर्थ भाव में है। अष्टकवर्ग में कर्क राशि में केवल 22 बिंदु हैं। इस प्रकार इमरजेन्सी के दौरान भारत की संवैधानिक कुंडली पर दशा व गोचर दोनों ही प्रतिकूल थे जिसके कारण भारत की सवैंधानिक व्यवस्था को गहरा धक्का लगा था।
विकिपीडिया की रिपोर्ट के अनुसार भारत के संविधान में अब तक एक सो छः संशोधन हो चुके हैं।संवैधानिक कुंडली में भारत को केतु की दशा प्राप्त हुई थी। केतु की दशा के केवल चार मास इक्कीस दिन शेष थे। केतु की दशा में कोई संविधान संशोधन नहीं हुआ। उसके बाद शुक्र की दशा में 23,सूर्य की दशा में 17,चंद्र की दशा में 14,मंगल की दशा में 20,राहु की दशा में 21 व गुरु की वर्तमान दशा में अब तक 11 संविधान संशोधन हो चुके हैं। गुरु की दशा भारत पर 17 -06 -2011 को शुरु हुई थी।
अमेरिका के संविधान में दो सो पैंतीस वर्ष में 27 संशोधन हुए हैं। भारत की सरकारें पिछले 74 वर्षों में अपनी सुविधा और अपने राजनैतिक एजेंडे के अनुसार समय समय पर संविधान संशोधन करती रही हैं। इसलिए भारत का संविधान बदलने की बजाय संविधान संशोधन ही बेहतर विकल्प है और मुझे नहीं लगता की भारत का संविधान बदला जाएगा।
संवैधानिक कुंडली में 15 फरवरी 2024 से 21 जनवरी 2025 तक गुरु -मंगल तथा बाद में 17 -06 – 2027 तक गुरु -राहु की दशा चलेगी।इन दशाओं में देश में कुछ महत्वपूर्ण गतिविधियां हो सकती हैं। 06 अगस्त 2026 से 31 -12 2026 तक कोई संवैधानिक संकट उपस्थित हो सकता है। संवैधानिक पद पर बैठे किसी माननीय की मृत्यु भी हो सकती है। दिसंबर 2026 से फरवरी 2027 व अप्रैल 2027से जून 2027 का समय भी संवेदनशील रहेगा। जून 2027 से जून 2030 के मध्य कोई मह्त्वपूर्ण संविधान संशोधन होने की संभावना है। इस प्रकार दशा और गोचर को देखते हुए जून 2024 में सत्तारुढ़ होने वाली सरकार धर्म ,वित्त ,पूजा पद्द्ति ,जनसंख्या नियंत्रण ,श्रमिक वर्ग और सुरक्षा बलों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण संविधान संशोधन कर सकती है।लेकिन संविधान बदलने की अभी कोई संभावना दिखाई नहीं देती।