संवत्सर 2081 और ग्रहों के संकेत

संवत्सर 2081, 08 अप्रैल 2024 को रात्रि 11 बजकर 51 मिनट पर शुरु होगा। इस संवत्सर का नाम पिंगल है।कुल साठ सम्वत्सरों के एक चक्र में पांच पांच वर्षों के बारह युग होते हैं और हर युग का एक स्वामी होता है। पिंगल नाम का संवत्सर एकादश युग में पड़ता है जिसका स्वामी अश्विनीकुमार है। इस संवत्सर का फल रोग,शोक ,जनहानि ,अकाल ,टकराव आदि बताया है। दुधारी पशुओं की हानि ,वाहनों का नाश ,कम वर्षा तथा शासकों में अचानक संकट उपस्थित होने से टकराव होता है। संवत्सर के प्रारम्भ में बृहस्पति मेष राशि में मंगल युक्त शनि से दृष्ट होने के कारण अशुभ फल ही अधिक होंगे।

संवत्सर के पदाधिकारी और उनके फल

इस संवत्सर का राजा मंगल होने की वजह से अग्निकांड बढ़ेंगे, वायु दुर्घटनाओं और आपराधिक घटनाओं में वृद्धि होगी।वर्षा कम होने की वजह से कृषि उत्पादन में कमी आएगी। शासक वर्ग अपने कर्त्तव्य का  पालन ठीक ढंग से नहीं करेगा। बालक बालिकाओं के प्रति क्रूरता बढ़ेगी। इस संवत्सर के मंत्री शनिश्चर महाराज होने की वजह से राजनीतिज्ञों का व्यवहार नैतिक मूल्यों के विरुद्ध होने से जनाक्रोश में वृद्धि होगी। सामान्य जनों की आर्थिक समृद्धि में बाधा आएगी।परन्तु कुछ लोगों की समृद्धि में वृद्धि होगी।शनि-मंगल महत्वपूर्ण पदों पर होने के कारण देश की सीमाओं पर और देश के अन्दर भी कुछ प्रान्तों में अशांति का वातावरण रहेगा। सुरक्षा एजेंसियों को स्थिति को नियंत्रण में रखने के सतर्क रहना होगा व कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी ।  

सूर्य 22 जून 2024 को 00 : 10 :00 बजे आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करेगा। हिन्दू कलेण्डर के हिसाब से उस समय शुक्रवार होगा। इस प्रकार मेघेश शुक्र हुआ। मेघेश शुक्र का फल अच्छी वर्षा ,खूब उत्पादन ,राजकोष में वृद्धि व  शासन की जनकल्याण वाली नीतियां बताया है। वर्षा के बारे में  सटीक भविष्यवाणी करने के आर्द्रा प्रवेश कुंडली का पूरा अध्ययन करना आवश्यक है। पूरा अध्ययन एक अलग लेख में किया जाएगा। सूर्य 16 जुलाई 2024 को सुबह 08: 00 बजे मंगलवार को कर्क राशि में प्रवेश करेगा। इस प्रकार सस्येश या कृषि उपज व उत्पादन का स्वामी,मंगल हुआ। अगर सस्येश मंगल हो तो पशुओं में रोग फैलने की आशंका रहती है। कम वर्षा के कारण खड़ी फसलों को नुकसान होता है।16 अगस्त 2024 को 17:20  बजे शुक्रवार को सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करेगा। अतः दुर्गेश शुक्र हुआ। शुक्र दुर्गेश होने  से सुख ,कुशलता ,धन ,समृद्धि ,दृढ़शासन तथा सर्वत्र शांति रहती है। कन्या संक्रांति 16 सितम्बर 2024 को 18 :30 बजे शुरु होगी और उस दिन सोमवार होगा और इस प्रकार संवत्सर का धनेश चंद्रमा होगा। चंद्रमा धनेश होने से रस पदार्थ ,पेय ,मिठाई आदि का व्यापार बढ़ेगा। कपड़ा ,चावल ,खुशबू ,घी ,तेल के बाजारों में लाभ बढ़ेगा और लोग अपनी इच्छा से करों का भुगतान करेंगे। तुला संक्रांति 17 अक्टूबर 2024 को 07:30 बजे बृहस्पतिवार को शुरु होने से रसेश गुरु होगा।रसेश गुरु होने से फल फूल खूब पैदा होते हैं। लेकिन किसी जनपद में शासक ,प्रशासक ,पुलिस ,सेना आदि के वाहन और शस्त्रों की परेड होती है।इसका अर्थ यह हुआ भारत के किसी हिस्से में कुछ समय के लिए अशांति हो सकती है। धनु संक्रान्ति रविवार दिनाक15 दिसम्बर 2024 को 22 :50 बजे शुरु होने से धान्येश सूर्य बनता है इसलिए वर्षा कम होगी और दलहन व तिलहन में तेजी रहेगी।नीरसेश मंगल (14 जनवरी 2025, 09 :10 बजे मकर संक्रान्ति ) होने की वजह से मूंगा ,लाल वस्त्र ,लाल चन्दन तांबे इत्यादि के भाव बढ़ेंगे।सवंत्सर का अंतिम अधिकारी फलेश (14 मार्च 2025 ,19 :10  बजे मीन संक्रान्ति ) शुक्र होने की वजह से फूल और पेड़ प्रचुर मात्रा में होंगे ,सरकार की लोकप्रियता बढ़ेगी और लोगों में नैतिकता और धर्म की बढ़ोतरी होगी। 

संवत्सर का वाहन 

इस संवत्सर का राजा मंगल होने से संवत्सर का वाहन बैल हुआ। संवत्सर के वाहन से संवत्सर के फल की मूल दिशा निर्धारित होती है। बैल वाहन होने से हर जगह उत्पादन में कमी होती है। लोग इधर उधर पलायन करते हैं। दुष्ट  आतंकियों का भय होता है और चौपायों को कष्ट होता है। आधुनिक अर्थो में इसका मतलब वाहन दुर्घटनाओं में वृद्धि भी हो सकता है।

संवत्सर के चार स्तम्भ 

संवत्सर के चार स्तम्भों का अध्ययन करने से पता चलता है कि जल स्तम्भ केवल 37 .09 प्रतिशत ही है। यह पेयजल का संकट , सरकारी विभागों में जल के वितरण में तालमेल की कमी , वर्षा जल का असमान वितरण ,पेयजल की काला बाजारी  और भूजल में गिरावट इत्यादि बताता है। तृण स्तम्भ 21 .78 प्रतिशत होने के कारण पशु चारे की कमी रहेगी ,मानसून के पिछड़ने और अनियमित होने  से गर्मी की अधिकता रहेगी ,फसलों के सूखने का भय रहेगा , सब्जियों की पैदावार कम होगी तथा कहीं गर्मी और कहीं अतिवर्षा होने से लोगों और पशु पछियों को कष्ट होगा।भारत के कुछ प्रांत अकालग्रस्त हो सकते है।  वायु स्तम्भ(90.57 प्रतिशत ) मजबूत होने के कारण वैशाख ज्येष्ठ के महीनों में स्वाभाविक रुप से होने वाली लू और तेज हवाएं देखने को मिलेंगी। अन्न स्तम्भ मजबूत(लगभग शतप्रतिशत ) होने के कारण वर्षा अनियमित होने के बावजूद खाद्यान का उत्पादन व उपलब्धता समुचित रहेगी। कुछ प्रांतों में भयंकर वर्षा से जन धन हानि होगी। जलभराव से अन्न खराब होगा।    

इस संवत्सर का रोहिणी वास सन्धि स्थान पर और संवत्सर वास व्यापार के स्थान पर है। इसका अर्थ है कि वर्षा अनियमित व असमान होगी यानि कभी ज्यादा कभी कम और कहीं ज्यादा कहीं कम। व्यापार के संदर्भ में नए नियम व नई व्यवस्थाएं लागू होगी और व्यापारियों में असंतोष बढ़ेगा। अनावश्यक संग्रह की प्रवर्ति के कारण मंहगाई बढ़ेगी। 

शनि व बृहस्पति का गोचर 

शनि अधिकतर कुंभ राशि में गोचर करेगा। सर्वाधिक अशांति पूर्व दिशा में रहेगी। सर्वाधिक शांत दक्षिण भारत रहेगा। कुम्भ राशि में गोचर करते समय शनि अपनी मार्गी और वक्री गति से पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में रहेगा। केवल 04अक्टूबर से 27 दिसंबर तक यह शतभिषा नक्षत्र में रहेगा। अद्भुत सागर के अनुसार ,”यदि शनि पूर्वाभाद्रपद सहित शतभिषा नक्षत्र में स्थित हो तो वैद्य ,कवि ,मद्यविक्रेता ,मद्यपानरत ,क्रय-विक्रय करने वाले और नीतिशास्त्र को जानने वाले पीड़ित होते हैं ” भारत सरकार इनसे सम्बंधित लोगों के लिए,कड़े कानून बना सकती है और इनके विरुद्ध अपराधिक घटनाएं भी बढ़ सकती हैं।बृहत्संहिता के अनुसार शतभिषा नक्षत्र में शनि गोचर करे तो वर्षा कम होती है। शनि शतभिषा नक्षत्र में वर्ष 2024 में  04अक्टूबर से 27 दिसंबर तक गोचर करेगा ,इसलिए अगली सर्दियों में बरसात कम होने की संभावना है। 

बृहस्पति 01 मई 2024 तक मेष राशि में और उसके बाद वृष राशि में गोचर करेगा। 03 मई 2024 से 2 जून 2024 तक गुरु अस्त रहेगा। 09 अक्टूबर से 04 फरवरी तक गुरु वक्री रहेगा। 17 अप्रैल 2024 से 12 जून 2024 तक बृहस्पति कृत्तिका नक्षत्र में गोचर करेगा। 13 जून से 20 अगस्त तक तथा 29 नवंबर 2024 से संवत के अंत तक  बृहस्पति रोहिणी नक्षत्र में गोचर करेगा। ये दोनों नक्षत्र गुरु के कार्तिक नामक वर्ष में आते हैं। अदभुत सागर और बृहत संहिता के अनुसार इस समय लोग भूख ,आतंक शस्त्र , और अग्नि से परेशान होते हैं। गाड़ी चलाने वालों को भय होता है। अग्नि से आजीविका चलाने वालों को यह पीड़ा होती है। लोगों में व्याधि व लड़ाई होती है। वर्ष के उत्तरार्ध में बोये जाने वाले धान्य प्रचुर मात्रा में होते हैं और पूर्वार्ध में बोये जाने वाले धान्य प्रचुर मात्रा में नहीं होते हैं। 21अगस्त से 28 नवंबर तक गुरु मृगशिरा नक्षत्र में गोचर करेगा जो गुरु का सौम्य वर्ष कहलाता है। इस वर्ष में वर्षा की कमी होती है। राजाओं में युद्ध होता है। टिडी दल ,चुहे और पक्षी फ़सल को नुकसान पहुंचाते हैं।गोचर ग्रहों के प्रभाव को देखकर लगता है कि सरकार शिक्षा ,मनोरंजन ,नैतिकता ,धर्म ,स्टॉक एक्सचेंज ,सोशल मीडिया ,न्याय प्रणाली व संचार के मामलों में नई व्यवस्थाएं /कानून लागु कर सकती है।  

उपर संवत्सर के पदाधिकारियों ,संवत्सर के वाहन ,संवत्सर के चार स्तम्भों इत्यादि के आधार पर संवत्सर का फल बताया गया है। लेकिन संवत्सरफल का सबसे महत्वपूर्ण आधार संवत्सर प्रवेशकुन्डली है। उपर बताए गए फल की पुष्टि संवत्सर प्रवेशकुन्डली में उपस्थित ग्रह स्थिति के आधार पर होनी आवश्यक है। जिन फलों की पुष्टि संवत्सर प्रवेशकुन्डली में स्थित ग्रहों के आधार पर नहीं होती वे अल्प मात्रा में ही प्राप्त होते हैं। दोनों स्थानों पर पुष्ट फल ही अच्छी मात्रा में प्राप्त होते हैं।संवत्सर 2081 की संवत्सर प्रवेशकुन्डली इस प्रकार बनती है :-  

सर्वप्रथम हम देखते हैं कि प्रवेशकुन्डली का लग्न मूल नक्षत्र में होने से अशुभ व उत्पातकारी है। संवत्सर प्रवेश लग्न के स्वामी गुरु पंचम भाव में शत्रु ग्रह बुध के साथ होने से राजनैतिक दृष्टिकोण से संघर्ष का वातावरण रहेगा।धार्मिक शिक्षा को लेकर विवाद रहेगा। भारत की कुंडली का लग्न संवत्सर प्रवेश लग्न के छटे भाव में  पड़ता है। शाकल्य संहिता का मत है कि अगर देश की कुंडली का लग्न संवत्सर प्रवेश लग्न के छटे भाव में पड़े तो अशांति ,उद्वेग,अव्यवस्था अदि होती है।फल प्रदीप ने इस ग्रह स्थिति को आकस्मिकताओं को बढ़ाने वाला माना है। कुंडली के तीसरे भाव में शनि -मंगल की युति के कारण पड़ोसी देशों चीन व पाकिस्तान आदि की तरफ से शांतिभंग की संभावना है। सीमा पर तनाव बना रहेगा।यह युति भारी वर्षा ,तुफान ,भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं से भी भारी जन -धन हानि का संकेत है। अंतरिक्ष में कोई दुर्घटना या किसी तरह के सम्पर्क/सुचना /प्रसार माध्यम से सम्बन्धित कोई अशुभ घटना भी हो सकती है। संवत्सर प्रवेशकुन्डली के चतुर्थ भाव में मीन राशि में सूर्य -शुक्र- चंद्र -राहु की युति होने से देश के राजनैतिक क्षेत्र में बहुत उठापटक रहेगी पर भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व बना रहेगा।दशम भाव में केतु की स्थिति शुभ नहीं है। किसी उच्च पदस्त कर्मचारी /नेता के सम्बन्ध में अशुभ समाचार प्राप्त होगा।

जनवरी 2025 में  हिमाचल प्रदेश ,उत्तराखंड व छत्तीसगढ़ आदि में प्राकृतिक प्रकोप से हानि होगी।मंगल -गुरु 4 फरवरी 2025  तक वक्र गति से चलेंगे ,जनवरी 2025 में शुरु से ही शनि -मंगल षडाष्टक योग चलेगा व  और मार्च 2025 में षडग्रही योग मीन राशि में बन रहा है। इस गोचर ग्रह स्थिति के कारण पाकिस्तान और चीन की सीमाओं पर अशांति रहेगी। पूर्वी लद्दाख ,मिजोरम और पाक अधिकृत कश्मीर में भी सैन्यबलों को सचेष्ट रहना होगा।देश के किसी महत्वपूर्ण नेता के सम्बन्ध में  मई 2024 तक कोई दुःखद समाचार मिल सकता है।

देश का लग्नेश शुक्र व राशीश चंद्र,षड्बल में बलवान होकर संवत्सर कुंडली के केंद्र में हैं पर राहु -केतु अक्ष में है। इनके एक तरफ मंगल- शनि हैं तो दूसरी तरफ मंगल युक्त शनि की दृष्टि है। इस ग्रह स्थिति से स्पष्ट है की इन सब कठिनाइयों के बावजूद देश प्रगति पथ पर अग्रसर रहेगा। कुछ महत्वपूर्ण वैज्ञानिक व तकनीकी  उपलब्धिओं  के कारण देश का मानसम्मान बढ़ेगा। अभिनय और सिनेमा आदि विभिन्न कलाओं के क्षेत्र में भी देश तरक्की करेगा। भारत 10 -03-2025 तक चन्द्र की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा में गुजर रहा है। दोनों ग्रह तृतीय भाव में हैं। इसलिए भारत संचार ,टेलीविज़न, उपग्रह संचार ,रेल ,वायुयान ,ऑटोमोबाइल ,विभिन्न प्रकार की कलाओं और देश के अंदरूनी व्यापार में कुछ बाधाओं और समस्याओं के बावजूद बहुत तरक्की करेगा।किसी खान दुर्घटना के फलस्वरूप सरकार खदानों में काम करने वाले मजदूरों /कामगारों कि बेहतरी के लिए  कोई कदम उठा सकती है। 

13 जून 2024 से 06 जुलाई 2024तक शुक्र मिथुन राशि में गोचर करेगा। 15 मई 2024से 04 अगस्त 2024 तक भारत की दशा होगी चंद्र -शुक्र -गुरु की।इस समय हालांकि गोचर में शुक्र पीड़ित नहीं है पर गुरु अष्टमेश होकर छटे भाव में है।इस समय किसी दूषित खाद्यपदार्थ से जनहानि होगी या कोई बड़ी राजनैतिक घटना घटेगी।संवत्सर 2081में कोई भी ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा। 

इस प्रकार संवत्सर प्रवेशकुन्डली के अध्ययन से पता चलता है कि कुछ समस्यायों के बावजूद भारत प्रगति पथ पर अग्रसर रहेगा और राजनैतिक उठापठक के बावजूद भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व बना रहेगा।

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