आवासीय भवनों के लिए सरल व उपयोगी वास्तु नियम

वर्तमान काल में जमीन की अत्यधिक कमी होने की वजह से भवन निर्माण में वास्तु के सभी नियमों का पालन करना संभव नहीं है। कुछ नियमों का पालन इसलिए भी संभव नहीं है कि अधिकतर लोग मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में बने अपार्टमेंट्स और फ्लैट्स में रहते हैं जिन्हें बड़े बड़े बिल्डर्स बनाते हैं जो निर्माण में स्थान का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहते हैं। फिर भी वास्तु शास्त्र के कुछ नियम इतने सरल हैं कि उन्हें ऐसी मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में बने अपार्टमेंट्स और फ्लैट्स में भी मामूली फेर बदल करके आसानी से लागु किया जा सकता है। प्रस्तुत लेख में हमने ऐसे ही कुछ सरल व उपयोगी नियमों का वर्णन किया है। 

1 घर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व  या उत्तर की और होना चाहिए।

2 द्वार दो पल्लों के शुभ होते है।

3 द्वार खोलने और बंद करने में आवाज नहीं होनी चाहिए।

4 वायु प्रदूषण से बचने के लिए जिन दिशाओं से घर में शुद्ध वायु का प्रवेश होता है ,उन दिशाओं में खिड़कियां लगाना शुभ होता है। उनके विपरीत दिशाओं में रोशनदान या exhaust fan लगाना चाहिए।

5  जहां तक हो सके ,द्वार और खिड़कियां पूर्व और उत्तर की और अधिक रखें। दक्षिण और पश्चिम में  द्वार और खिड़कियां न रखें या कम रखें।

6 दरवाजे बाहर की और न खुलकर भीतर की खुलने चाहिए अन्यथा रोग बढ़ेंगे। 

7 दरवाजा अपने आप खुलने और बंद होने वाला नहीं होना चाहिए। 

8 चौखट में नीचे की देहली अवश्य होनी चाहिए। 

9 पूरे भवन में दरवाजे सम संख्या यथा 2,4 ,6 ,8 तो हों पर दशक में यथा 10 ,20 ,30 आदि न हो। 

10 किसी बीम के नीचे द्वार कभी नहीं होना चाहिए। 

11 सीढ़ियों के नीचे कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए।सीढ़ियों के नीचे स्टोर आदि बनाएं तो कोई हानि नहीं। 

12 भवन की ईशान (North East) दिशा में , सीढ़ियों के नीचे,ब्रह्म स्थान में ,प्रमुख द्वार के सामने ,पूजा घर व रसोईघर के ठीक सामने टॉइलेट कभी नहीं बनाना चाहिए।

13 टॉइलेट नार्थ वेस्ट (वायव्य ) या साउथ ईस्ट (आग्नेय ) या साउथ वेस्ट  दिशा में बनाना चाहिए। टॉइलेट का दरवाजा पूर्व या आग्नेय (साऊथ ईस्ट ) की तरफ खुलने वाला होना चाहिए। टॉइलेट में बैठते वक्त मुंह उत्तर की तरफ होना चाहिए।

14 टॉइलेट में दर्पण पूर्व या उत्तर की दिवार पर लगाना चाहिए। गीजर अग्निकोण (साउथ ईस्ट) में होना चाहिए। 

15 अगर टॉइलेट बाथरुम कंबाइन (combined) हों तो बाथटब ईशान (नॉर्थ ईस्ट) दिशा में रखें। 

 16 वास्तु नियमों के अनुसार पूजा स्थल ईशान कोण (North East) में स्थापित होने चाहिए। मूर्ति की स्थापना चबुतरे पर होनी चाहिए और मूर्ति का मुख पूर्व या उत्तर की और होना चाहिए। भगवान विष्णु ,लक्ष्मी ,शिव ,पार्वती ,गणेश। कार्तिक्ये ,इंद्र अथवा सूर्यदेव का मुख पूर्व या पश्चिम की और होना चाहिए।ब्रह्मा का मुख किसी भी और हो सकता है। नवग्रह , कुबेर,गणेश ,भैरव ,दुर्गा ,चामुण्डा आदि देवी मंडप में मूर्ति का मुख दक्षिण और हनुमान जी का मुंह साउथ वैस्ट दिशा में होना चाहिए। 

17 पूजा स्थल रसोई या शयन कक्ष में न बनाए।पूजा स्थल के ऊपर या नीचे टॉइलेट न बनाएं। पूजा कक्ष में खंडित मूर्ति न रखें।पूजा कक्ष के पूर्व या उत्तर में खिड़की अवश्य रखें। दरवाज़ा भी इधर ही होना चाहिए। सीढ़ियों के नीचे पूजा कक्ष कभी मत बनाएं। 

18 घर के मुखिया का शयन कक्ष साउथ वेस्ट  में सर्वश्रेष्ठ होता है।

19 बच्चों को साउथ वेस्ट दिशा के कमरे में सुलाने से कलह बढ़ती है। विवाह योग्य लड़की का शयन कक्ष वायव्य (नार्थ वेस्ट) में उत्तम होता है। 

20 मेहमानों के लिए पश्चिम व वायव्य (नार्थ वेस्ट) दिशा के कमरे ठीक होते हैं। 

21दक्षिण दिशा में पैर करके भूलकर भी नहीं सोना चाहिए।

22 बच्चों का शयन कक्ष पूर्व या उत्तर में श्रेष्ठ होता है। कुछ विद्वान् पश्चिम में भी ठीक मानते हैं। बच्चों को अपने कक्ष में साउथ वेस्ट दिशा में पश्चिम में सिर करके सोना चाहिए। बच्चों को पूर्व या उत्तर में मुंह करके पढ़ना चाहिए। 

23 बीम के नीचे सोने या बैठने से बचना चाहिए।

24 काम करते समय आपका चेहरा  पूर्व ,उत्तर या पश्चिम दिशा में होना चाहिए ,दक्षिण में कभी नहीं। 

25 सभी कमरों की ईशान (नार्थ ईस्ट) दिशा को साफ सुथरा और हल्का रखें। सभी कमरों का मध्य भाग खाली रखें। 

26 शयन कक्ष में दर्पण लगाने से मानसिक उन्माद (Depression) बढ़ता है। यदि पहले से दर्पण लगा हो तो रात को कपड़े से ढक दें। 

27 रसोई घर हमेशा आग्नेय कोण (South East) में होना चाहिए। पश्चिम या वायव्य (नार्थ वेस्ट) दिशा में रसोईघर मध्यम फलदायक है।

28 बाहर क़े द्वार से चुल्हा दिखे तो परिवार पर संकट आता है। चूल्हा व सिंक (sink) साथ साथ होने से घर के सदस्यों में क्रोध बढ़ता है।

29 कूड़ेदान  ईशान (नार्थ ईस्ट) दिशा में भूलकर भी नहीं रखें। 

30 बर्तन ,मिक्सी ,मसालों के डिब्बे दक्षिण या पश्चिम में रखने चाहिए। 

31 भोजन बनाने वाली महिलाओं या पुरुषों को रसोई में बैठकर खाने से घर की बरकत का नाश होता है। 

32 रसोईघर में नया चुल्हा बुधवार ,गुरुवार या शुक्रवार को रखना चाहिए अन्य दिनों में नहीं।

33 रसोई में चूल्हा रखने के लिए काले ग्रेनाइट का प्रयोग न करें। ग्रेनाइट शरीर के रक्त संचार में प्रतिकूल प्रभाव डालता है। चूल्हा रखने का स्लेब मजबूत होना चाहिए। अगर यह अचानक टूट जाता है या तड़क जाता है तो घर में गरीबी बढ़ती है। 

34 आजकल अधिकांश लोग नगदी व जेवर बैंक में रखते हैं। घर में तिजोरी या सेफ उत्तर दिशा में रखनी चाहिए। तिजोरी या सेफ में नगदी व जेवर न हो तो कुछ बादाम या छुहारे आदि रख दें। लेकिन कोई सुगंधित पदार्थ न रखें। यदि सम्भव हो तो बैंक में भी ऐसा लॉकर चुने जो उत्तर की और खुले। 

35 डाइनिंग रुम पूर्व ,उत्तर या पश्चिम दिशा में होना चाहिए। डाइनिंग टेबल का टेबल टॉप संगमरमर का नहीं होना चाहिए।

36 पदमपुराण के अनुसार पूर्व की और मुंह करके खाने से आयु बढ़ती है। दक्षिण की और मुख करके खाने से प्रेतत्व की प्राप्ति होती है। पश्चिम की और मुंह करके खाने से आदमी रोगी होता है और उत्तर की और मुख करके खाने सेआयु तथा धन की प्राप्ति होती है। स्कन्द पुराण के अनुसार जो पैर धोय बिना खाता है ,जो दक्षिण की और मुख करके खाता है तथा जो सिर ढक कर खाता है ,उसके अन्न को सदा प्रेत ही खाते हैं। महाभारत के अनुसार जूते पहनकर भोजन करना ठीक नहीं है। 

37 ड्राइंग रुम का दरवाजा दक्षिण पूर्व या दक्षिण पश्चिम में कभी न रखें। पूर्व या पश्चिम में रख सकते हैं। 

38 ड्राइंग रुम में कछुए की तस्वीर लगाना शुभ है। यह लंबी आयु का प्रतीक है। 

39 ड्राइंग रुम में गृह स्वामी को पूर्व या उत्तर की और तथा मेहमान लोगों को दक्षिण या पश्चिम की और मुंह करके बैठना चाहिए। 

40 गृह स्वामी को चाहिए की मकान में पूर्व ,उत्तर ,ईशान (नॉर्थ ईस्ट) और वायव्य (नॉर्थ वेस्ट) दिशा में कम वजन रखे तथा पश्चिम,दक्षिण ,आग्नेय (साउथ ईस्ट) और दक्षिण पश्चिम (साउथ वेस्ट) दिशा में अधिक वजन रखे। 

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