श्री श्री रविशंकर एक संबुद्ध रहस्यदर्शी व परोपकारी संत

श्री श्री रविशंकर जी का जन्म 13 मई 1956 को तमिलनाडू के पापनाशम गांव में एक धार्मिक परिवार में हुआ। मनुष्य के मन में जहां कहीं भी कभी कभी पाप के जो काले बादल मंडराने लगते हैं उन्हीं का नाश करने के लिए ही शायद इनका जन्म हुआ था।इनकी बहन श्रीमति भानुमति नरसिम्हन ने इनकी जीवनी Gurudev-On the plateau of the peak में लिखा है कि ,” My memories of Papanasam are of a sweet, simple village, peaceful yet vibrant with activity . Located about twenty-five kilometers from the city of Thanjavur in Tamil Nadu, its name means the ‘ destruction of sins’ . इनके पिता श्री वैदिक ज्योतिष  तथा आयुर्वेद के विद्यार्थी थे। जन्म के समय इनके पिता श्री ने इनकी जन्मपत्री की विशेष ग्रहस्थिति को देखकर इनका नाम रविशंकर रखा। इनकी बहन आगे लिखती हैं ,” Pitaji mapped out the child’s horoscope and shared its uniqueness with other family members. Four planets were in exalted positions in addition to other very special configurations. (Sun, Moon, Mars and Jupiter are exalted in his horoscope).—— The day of baby’s birth also coincided with the birth anniversaries of two great Indian saints and reformers, Sri Adi Shankara and Sri Ramanujacharya” .इनका धार्मिक कार्यक्रम “जीने की कला “(Art of Living)  एक ऐसा कार्यक्रम है जो व्यक्ति के मन में उपस्थित दुःख के आसुओं (tears of misery) को अस्तित्व के प्रति धन्यवाद (gratitude) से भर देता है। सुदर्शन क्रिया सांस लेने कि एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व में ऐसे परिवर्तन करती है जिससे वह सहज रुप से ही आत्मज्ञान की और अग्रसर होता है। बहुत से घरों में यह एक दैनिक कार्यक्रम के रुप में लोकप्रिय है। इससे पहले कि हम उनके जीवन के बारे में और कुछ जानें सबसे पहले हम उन ग्रह योगों को देखते हैं जिनके कारण श्री श्री रविशंकर जी एक संबुद्ध रहस्यदर्शी व परोपकारी संत बने।

इनके लगन में उच्च राशि का मंगल रुचक नामक महापुरुष योग का निर्माण कर रहा है। इस योग में उत्त्पन्न व्यक्ति आकर्षक व्यक्तित्व का धनी होता है। वह परम उत्साही ,बलवान ,काले बालों वाला,संघर्षप्रिय, शत्रुओं को जीतने वाला तथा विवेकवान होता है। बृहत् पराशर होरा शास्त्र में ऐसे व्यक्ति के और भी कई गुण लिखे हैं। मुख्य रूप से ऐसे व्यक्ति  संघर्षप्रिय और निडर व्यक्तित्व के धनी होते हैं। 

सातवें भाव में उच्च का बृहस्पति हंस महापुरुष योग का निर्माण कर रहा है। यह योग व्यक्ति को मधुर वाणी बोलने वाला बनाता है। श्री श्री रविशंकर अपनी धीमी व मधुर वाणी के लिए प्रसिद्ध हैं। यह योग व्यक्ति को बुद्धिमान बनाता है और उसके मन में ज्ञान  प्राप्त  करने की प्यास होती है। उसे धर्म शास्त्रों का पूरा ज्ञान होता है। वे गुणों से भरपूर होते हैं और दूसरों की भलाई के लिए काम करने वाले होते हैं। उन्हें सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। 

जैसा कि उपर लिखा जा चुका है कि जिन लोगों की जन्मपत्री में रुचक महापुरुष योग होता है वे उत्साही ,निडर व सघर्ष प्रिय होते हैं। श्री श्री रविशंकर विश्व के बहुत से अशांत इलाकों में  मध्यस्थता के लिए जा चुके हैं और लगभग हर जगह इनके प्रयासोँ की प्रशंसा की गई है। 2007 व 2008 में ये  इराक में गए और वहां के राजनैतिक त्तथा धार्मिक नेताओं से मिलकर वैश्विक शांति को बढ़ावा देने पर बात की। नवम्बर 2014 में श्री श्री रविशंकर इराक के राहत शिविरों में गए। वहां पर उन्होंने एक सभा में वहां पर रहने वाले यज़ीदी समुदाय के लोगों और दूसरे अल्पसख्यक लोगों की खराब हालत के बारे में बात की।जून 2015 में वे  हवाना में कोलंबिया की सरकार और वामपंथी संगठन FARC के प्रतिनिधिओं की बैठक में शामिल हुए। वहां पर उन्होंने FARC के नेताओं से अपील की कि अपने राजनैतिक व सामाजिक न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए वे महात्मा गांधी द्वारा बताए अहिंसा के रास्ते पर चलें। 2019 उन्होंने वेनजुएला में दोनों पक्षों से कहा की देश में शांति और स्थिरता लाने के लिए वे टकराव का रास्ता छोड़कर बातचीत की मेज़ पर बैठ कर गतिरोध को समाप्त करें। 2017 में 71वे स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर  मणिपुर में ग्यारह आतंकवादी संगठनों के अड़सठ आतंकवादियों ने  सरकार के सामने आत्मसमर्पण किया। मणिपुर के मुख्यमन्त्री ने कहा कि इसे संभव बनाने में श्री श्री रविशंकर जी का बहुत बड़ा हाथ है। मणिपुर में श्री रविशंकर का संगठन पिछले बीस वर्षों से कार्य कर रहा है। मार्च 2019 भारत के उच्चतम न्यायालय  ने राममंदिर पर मध्यस्थ्ता करने  के लिए  एक तीन सदस्यीय  कमेटी बनाई और उसे आठ सप्ताह में अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा। श्री श्री रविशंकर को भी उस कमेटी में शामिल किया गया था।

ऊपर लिखा जा चुका है की जिनकी कुंडली में हंस महापुरुष योग होता है वे दूसरों की भलाई के लिए कई काम करते हैं। श्री श्री रविशंकर के संगठन में लगभग तीस हजार अध्यापक व दस लाख स्वयंसेवक हैं जो परोपकार की विभिन्न  परियोजनाओं को कार्यान्वित करते  हैं। 1992 में श्री श्री रविशंकर ने कैदियों के पुनर्वास के लिए भी एक कार्येक्रम शुरु किया था। सामाजिक उत्थान ,स्वास्थय ,स्वच्छता ,पर्यावरण ,स्त्री सशक्तिकरण ,बाल उत्थान ,शिक्षा व आपदा राहत प्रबन्धन इत्यादि के सभी काम इनके स्वयंसेवकों द्वारा किए जाते हैं। दूर दराज के इलाकों में श्री श्री रविशंकर के स्वयंसेवकों द्वारा लगभग 618 निःशुल्क विद्यालय चलाए जाते हैं जिनमें 67000 बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं। सौर उर्जा की परियोजनाओं द्वारा लगभग 90,000  लोग लाभान्वित होते हैं। 22 राज्यों में दस लाख लोगों को रासायनिक  उर्वकों के बिना खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। यह उनके द्वारा परोपकार के लिए गए कार्यो की केवल  एक बानगी है। यह सब कुछ वे हंस महापुरुष योग के कारण ही कर पाए। सर्वार्थ चिंतामणि में लिखा है कि अगर नवमेश केन्द्र या त्रिकोण में बैठकर लग्न या लग्नेश को देखे तो दान योग बनता है। ऐसा व्यक्ति बहुत दान करता है। इस कुंडली में नवमेश बुध पांचवे  भाव में बैठकर लग्नेश शनि को द्य्ष्टि दे रहा है। नवमेश के साथ सप्तमेश चंद्र भी है। यह योग पांच -ग्यारह भाव में है। पंचमेश -सप्तमेश का योग राजयोग का भी निर्माण कर रहा है। यह योग श्री श्री रविशंकर की प्रसिद्धि और सफलता को कई गुणा बढ़ाने वाला योग है क्योंकि इस पर लग्नेश की एकादश भाव से दृष्टि पड़ रही है। दरअसल एक तो दानयोग और दूसरा राजयोग और इन योगों का पंचम -एकादश भाव में होना बहुत शक्तिशाली और शुभ योग है जिसने  उनकी प्रसिद्धि ,सफलता और दानवीरता को बढ़ा दिया है। 

श्री श्री रविशंकर जी की कुण्डली में दो महापुरुष योग मिलकर एक और बहुत सुन्दर योग का निर्माण कर रहे हैं। मंगल चतुर्थेश है और गुरु से दृष्ट है। सर्वार्थचिन्तामणि के अनुसार अगर चतुर्थेश का सम्बन्ध गुरु से हो तो बंधु पुज्य योग बनता है और ऐसा व्यक्ति अपने परिवार समाज और मित्रों में पूजनीय होता है। क्योंकि चतुर्थेश अपनी उच्च राशि में है तो यह सर्वार्थचिन्तामणि के अनुसार ही निष्कपट योग भी है और यह व्यक्ति को शुद्ध ह्रदय और कपटरहित व्यक्तित्व का धनी बनाता है। ऐसा व्यक्ति आडंबरहीन व खुला जीवन जीता है। उसके व्यक्तित्व का कोई गुप्त पहलु नहीं होता। 

दशमेश शुक्र गुरु के नवांश में है। गुरु उच्च राशि में बलवान होकर बैठा है। नवमेश बुध व दशमेश शुक्र में राशिपरिवर्तन योग है। सर्वार्थचिन्तामणि के अनुसार यह जपध्यानसमाधि योग है। ऐसा व्यक्ति ध्यान और धार्मिक गतिविधियों में तल्लीन रहता है। लग्नेश और दशमेश दोनों शुभ ग्रह गुरु द्वारा दृष्ट हैं। लग्नेश शनि चतुर्थेश मंगल को देख भी रहा है। चतुर्थेश मंगल लग्न में भी है। यही कारण है कि इनका  व इनकी माता श्री का परस्पर बहुत स्नेह रहा। वे 9 नवम्बर 1999 को बंगलुरु में अपना शरीर त्याग कर स्वर्ग सिधार चुकी हैं।

सर्वार्थचिन्तामणि में लिखा है कि लग्नेश या जिस राशि में लग्नेश हो उस राशि का स्वामी अगर चर राशि में हो तो ऐसा जातक सदा यात्रा पर रहता है।श्री श्री रविशंकर की कुंडली में लग्नेश शनि ग्यारहवे भाव में वृश्चिक राशि में हैं। वृश्चिक के स्वामी लग्न में चर राशि में हैं। इस योग को सर्वार्थचिन्तामणि में सदा संचार योग कहा गया है।श्री श्री रविशंकर जी हर वर्ष लगभग चालीस देशों की यात्रा करते हैं। भारत के भी कई शहरों में भी वे घूम चुके हैं। 

शम्भू होरा प्रकाश में लिखा है कि दशमेश अगर कुंडली में और नवांश में द्विस्वभाव राशि में हो तो व्यक्ति अपने देश में और विदेशों में बहुत धन व सम्मान प्राप्त करता है। श्री श्री रविशंकर की कुंडली में यह योग पूर्ण रुप से लागु होता है। दशमेश शुक्र कुंडली में मिथुन राशि में और नवांश में धनु राशि में है। इस योग के परिणाम भी उनके जीवन पर पूरे लागु होते हैं। 

लगन से दशमेश शुक्र गुरु के नवांश में है। सूर्य और चंद्र से दशमेश शनि बुध के नवांश में है। बृहत जातक में व्यवसाय से संबन्धित सिद्धान्त के अनुसार श्री श्री रविशंकर का व्यवसाय बुध व गुरु से सम्बन्धित होना चाहिए। शिक्षा , ज्ञान ,मंदिर ,धर्म ,परोपकार सभी इन्ही दो ग्रहों के अन्तर्गत आते हैं और श्री श्री रविशंकर इन्ही से सम्बन्धित कार्य करते हैं।केतु पंचम भाव में चंद्र  (केन्द्र स्थान के स्वामी ) के साथ हैं। बृहत् पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार यह एक राजयोग है।चंद्रमा बुध के नवांश में है जो कि जन्मकुण्डली में पंचम भाव (त्रिकोण ) में है। सर्वार्थचिन्तामणि के अनुसार यह भी एक राजयोग है। सभी राजयोग व्यक्ति को समाज में समानजनक स्थान दिलाने में सहायक होते हैं। 

श्री श्री रविशंकर की कुण्डली में कुछ अन्य योग भी हैं। सूर्य चंद्र और गुरु लगभग समान अंशों में हैं। इसलिए ये एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। जैमिनी के आत्मकारक गुरु और पुत्रकारक बुध कुण्डली ,सप्तमांश और  दशमांश में एक दूसरे को दृष्ट करते हैं। यह योग व्यक्ति को आध्यात्मिक बनाता है।

कुंडली में सभी ग्रह छ भावों में हैं। इसे दामिनी योग कहा जाता है। ऐसे व्यक्तियों का व्यक्तित्व समानुपातिक होता है। उनकी रूचि जीवन के विभिन्न आयामों में होती (multiple interests) है। वह धनी ,उदार,प्रसिद्ध ,विद्वान् और संतुष्ट होता है। वह धन का अर्जन ईमानदारी से करता है। पांचवे ,छटे और सातवे भाव में शुभ ग्रह तथा पहले और चौथे भाव में अशुभ ग्रह हैं। सभी ग्रह उच्च के या स्वराशि या नवांश के हैं। जो नहीं हैं वो स्वराशि के ग्रह से राशि परिवर्तन में हैं। इसे कूर्म योग कहते हैं। ऐसे व्यक्ति गुणि ,प्रसिद्ध ,लोगों का भला चाहने वाले ,धार्मिक व पवित्र कार्य करने वाले होते हैं। कुण्डली में चन्द्रलग्नेष शुक्र पर किसी ग्रह की दृष्टि नहीं है। द्रेष्काण में चंद्र शनि की राशि मकर में है। वह केवल शनि से दृष्ट है जो कि मंगल की राशि वृश्चिक में है। यह सन्यास योग है। 

नवमेश बुध पांचवे भाव में है जिसको लग्नेश शनि देख  रहा है। नवमेश के साथ सप्तमेश चंद्र व केतु भी है। एक आध्यात्मिक व्यक्ति की कुंडली में इस योग के कई अर्थ हैं। दशमेश व नवमेश में राशिपरिवर्तन योग भी है। पंचमेश -दशमेश का राशि परिवर्तन पिछले जन्म के कर्मों का इस जन्म के कर्मों से योग यानि गुरु जी पिछले जन्म से ही ऐसे शुभ कार्य करते आए हैं। उनमें मंत्रों की शक्ति है और वे अंतर्दृष्टि द्वारा मंत्र शक्ति का उपयोग करके मानवता का भला कर सकते हैं। उनका जन्म -पुनर्जन्म का व्रत पूरा हो गया है। 

आठवां भाव रहस्य का व अनुसंधान (research) का है। इसका स्वामी उच्च का होकर अपने भाव से त्रिकोण में है। गुरु बारहवे भाव का स्वामी होकर केंद्र में उच्च का है और चथुर्तेश द्वारा दृष्ट है। अनुसंधान का आठवां  भाव और इससे त्रिकोण (चौथा और बारहवां भाव) –सब के स्वामी उच्च के होकर केंद्र में हैं और एक दूसरे से दृष्ट हैं। यही कारण है कि इन्होंने अनुसंधान द्वारा सुदर्शन -क्रिया ईजाद की जो शरीर और आत्मा को पवित्र कर देती है। 

द्वितीय भाव से वाणी का पता लगाया जाता है। भावतभावम सिद्धांत के अनुसार तीसरा भाव भी देखना चाहिए। वाणी का कारक ग्रह बुध है। अत : बुध से द्वितीय भाव भी वाणी के लिए देखना आवश्यक है। द्वितीय भाव के स्वामी एकादश भाव में लग्नेश के साथ राशिपरिवर्तन योग में है। यह चंद्र -बुध -केतु को दृष्ट कर रहा है जो पंचम भाव में हैं। तृतीयेश गुरु सप्तम भाव में उच्च राशि के हैं और मंगल को देख रहे हैं। बुध से द्वितीयेश स्वयं बुध हैं जो अपने राशीश के साथ राशिपरिवर्तन योग में हैं। इन्ही योगों के कारण उनकी वाणी इतने लोगों को प्रभावित करती है और वो इतना मीठा बोलते हैं। द्वितीय भाव कुटुम्भ का भाव भी है और द्वितीयेश उपचय (एकादश ) भाव में है। द्वितीयेश लग्नेश के साथ राशि परिवर्तन योग में हैं। इसीलिए सारा विश्व ही उनका परिवार बन जाता है और वे जात -पात और धर्म का भेद -भाव किए बगैर सब पर अपनी करुणा बरसाते हैं। 

अब हम दशाओं के माध्यम से इनके  जीवन की कुछ घटनाओं की विवेचना करेंगे। इनका जन्म मंगल की महादशा और शनि की अंतर्दशा में हुआ। मंगल चतुर्थ और एकादश भाव के स्वामी है। उच्च के होकर लग्न में बैठे हैं। अन्तर्दशानाथ शनि के साथ राशिपरिवर्तन योग में हैं। चौथा भाव बच्चों की स्कूली पढ़ाई का भाव है। बुध शिक्षा के कारक ग्रह हैं। बुध से चतुर्थ भाव सिंह के स्वामी सूर्य चतुर्थ भाव में उच्च के हैं। आठवां भाव रहस्य और समाधि का भाव भी है। इसी कारण से गुरुजी बचपन से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे और धरम करम में रूचि रखते थे। कहा जाता है की उनकी संस्कृत में बहुत रुचि थी और वे चार वर्ष की अल्प आयु में भी गीता पढ़ और सुना सकते थे। तीन वर्ष की आयु में उन्होनें कुछ मंत्र याद कर लिए थे और वे आँख बंद करके उन्हें दोहराते रहते थे। वे पुजारी को मंदिर में पूजा करते हुए ध्यान से देखते थे और घर में आकर उस विधि की नकल करते थे।

07 जून 1960 से गुरुजी पर राहु की दशा शुरू हुई। राहु एकादश भाव में बलवान होकर बैठे हैं। राहु,केतु व बुध वर्गोत्तम हैं। राहु शनि के अनुराधा नक्षत्र में है। राहु के लिए एकादश भाव बहुत उपयुक्त होता है। मानसागरी के अनुसार एकादश भाव का राहु व्यक्ति को जितेन्द्रिय और प्रचारक बनाता है। उसे शास्त्रों का गूढ़ ज्ञान होता है और वह दूर दूर के स्थानों की यात्रा करता है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि राहु विद्रोही होता है और वह परम्परा से हट कर काम करता है। लगभग नो वर्ष की आयु में वे अपने नाना के घर गए। राहु नाना -नानी का प्रतीक भी है। वहां पर उन्होंने देखा की वहाँ पर खासकर उनकी नानी छुआछात को मानती हैं। उन्होंने गीता का सन्दर्भ देकर बहुत तर्क दिए की छुआछात नहीं होना  चाहिए पर उनकी एक नहीं चली। अंतत: वे इतने विद्रोही हो गए की इनकी मां को वापिस आना पड़ा। राहु  शनि के साथ हैं और इन्हे गुरु देख रहा है। राहु -शनि शिक्षा के पांचवें भाव को देख रहे हैं जहां केतु ,उच्च का चंद्र व बुध हैं। इन सब ग्रहों के प्रभाव के फलस्वरूप न केवल उन्होंने विज्ञान की शिक्षा ली बल्कि वैदिक साहित्य भी पढ़ा। 

राहु महादशा की दूसरी विशेष घटना थी की वे 1975 में वे महऋषि महेश योगी से मिले। कोई महीना तारीख कहीं उपलब्ध नहीं है। शायद राहु -चन्द्र की दशा रही होगी क्योकि चंद्र नवमेश बुध के साथ शिष्य के पंचम भाव में है। विशेष बात यह है की बुध -शनि, राहु -केतु अक्ष में हैं। इसलिए 1982 में इन्होंने गुरु से भी विद्रोह कर दिया। लेकिन 1982 वर्ष विवादास्पद है। क्योकि आर्ट ऑफ़ लिविंग की वेबसाइट के अनुसार इसकी स्थापना 1981 में हुई थी। उनकी बहन भानुमति नरसिम्हन उनकी जीवन -कथा में लिखती हैं :-

 ” in the late 1970s,Maharishi wanted to open a Vedic school in Bengalore for which Pitaji had recruited 175 students. However organization decided to consolidate all the schools and relocate the children to a place near Delhi. As they were all from the southern part of India, it was difficult for the children to adapt to the new environment. So they wanted to come back. But their education had to continue. So my brother decided to take over the school, though everyone around him was baffled at the decision. This was clearly the first time that he was taking up an initiative on his own. He chose to stand by the needs of the children despite the friction it caused between him and the organization.

one night, young Ravi was at Hubli railway station with tickets to two different destinations. One train  would leave for Bengalore  where a few people from Maharishi’s movement were waiting to take him to Delhi for a talk. The other train were to take him to Solapur. On one hand was an enlightened organization with all the infrastructure and facilities and, on the other, was the vision he had for the people. He later said,’ I knew that if I take the train to Solapur, something new would begin. People were waiting for me all over the world and therefore, I decided to take the train to Solapur.’ This resulted in birth of the Art of Living movement.

इसके बाद नवरात्रों में गुरु जी ने दस दिन मौनव्रत रखा और इसके कुछ महीने बाद  मार्च 1982 में सुदर्शन क्रिया का जन्म उनकी उक्त जीवनकथा में बताया है जिससे यह सिद्ध होता है कि गुरु जी 1981 में श्री महेश योगी से अलग हो गए थे। शायद दशा रही होगी गुरु -शनि -केतु की (दिनांक 29 -04 -1981 से 22 -06 -81 तक )1  गुरु द्वादशेश होने से तथा शनि व केतु नैसर्गिक रूप से अलगाव के प्रतीक हैं। सुदर्शन क्रिया की खोज के समय दशा रही होगी गुरु -शनि -मंगल की (27 -03 -1982 से 19 -05 -1982 )1 शनि व मंगल दोनों का सम्बन्ध अनुसन्धान के आठवें भाव से है। सुदर्शन क्रिया से सब प्रकार का तनाव छु मन्तर हो जाता है और व्यक्ति बिल्कुल हल्का और प्रसन्न हो जाता है। श्री श्री रविशंकर ने देश -विदेश में लोगो को सुदर्शन क्रिया सिखानी शुरु कर दी और लोगों को चमत्कारिक लाभ होने लगा। ऐसी भी कहानियां हैं कि गुरु जी ने कुछ चमत्कार भी किए और लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लाइन बनाकर खड़े होने लगे। गुरु जी यह महसूस करते थे कि लोग ज्ञान की अपेक्षा चमत्कारों में ज्यादा रुचि लेते हैं। इसलिए कुछ शिक्षक तैयार किए गए जो लोगों को देश -विदेश में सुदर्शन क्रिया समझाने लगे। इन्होने  आत्मविकास के कई कार्येक्रम शुरु किया जिनसे हजारों लोगों को लाभ मिला और वे अपने -अपने क्षेत्र में बेहतर काम करने लगे। विदेशों में आर्ट ऑफ़ लिविंग और भारत में व्यक्ति विकास केन्द्र स्थापित किए गए। कई प्रकार के समाज -सेवा और समाज सुधार के कार्येक्रम शुरु किए गए। श्री श्री रविशंकर वैष्विक धर्मगुरु के रुप में जाने जाने लगे। 

एकादश भाव की दशा में हमारे प्रयास फलीभूत होते हैं और हमें पुरस्कार व अवार्ड भी मिलते हैं। श्री श्री रविशंकर की कुण्डली में 7 जून 1994 से 06 जून 2013 तक शनि की महादशा चली।07 जून 2013 से उन पर बुध की महादशा चल रही है। शनि एकादश भाव में राहु के साथ हैं और लग्नेश मंगल से राशि परिवर्तन योग में हैं। केतु ,बुध ,चंद्र व गुरु एकादश भाव को देख रहे हैं। इस  प्रकार सात ग्रहों का सम्बन्ध एकादश भाव से है। यह भी इनकी सफलता का मुख्य  कारण है। अब तक श्री श्री रवि शंकर जी को मुख्य रुप से निम्नलिखित अवार्ड मिल चुके हैं। 

1 11 -01 -2007 को पुणे में संत श्री ज्ञानेश्वर विश्व शांति पुरस्कार (02 -01 -2007 से 04 -03 -2007 तक शनि -मंगल -राहु )

2 .10 -10 -2009 को विश्व संस्कृति फोरम जर्मनी द्वारा पुरस्कृत। (17 -06 -2009 से 16 -11 -2009 तक शनि -राहु -केतु )

3 .शिवानंद फाउंडेशन दक्षिणी अफ्रीका द्वारा 26 -08 -2012 को शिवानन्द विश्वशांति पुरस्कार (27  -06  -2012 से 10 -09 -2012 तक शनि -गुरु -सूर्य )

4 . 03 -09 -2012 को ब्राज़ील सरकार द्वारा उच्चतम सम्मान Tiradentes Medal द्वारा सम्मानित (27-06 -2012 से 10-09 -2012 तक शनि -गुरु -सूर्य )

5 . 12 -09 – 2012 पैराग्वे में इन्हे Illustrious guest of the city of Asunction तथा Illustrious citizen अवार्ड Paraguayan Municipality द्वारा दिया गया (10 -09 -2012 सै 26 -11 -2012 तक शनि -गुरु -चंद्र ) 

8 . 28 -03 -2016 को भारत सरकार ने इन्हें पदम विभूषण से सम्मानित किया (12 -03 -2016 से 02 -04 -2016 तक बुध -केतु- -मंगल)

इसके अतिरिक्त इन्हें पेरु ,कोलंबिया ,ब्रुसेल्स ,होस्टन ,न्यू जर्सी ,मंगोलिया इत्यादि द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है और ये कई वैश्विक मंचों को संबोधित कर चुके हैं।

09 नवंबर 1999 को शनि -बुध -शनि की दशा में इनकी माता श्री की मृत्यु हो गई। शनि माता के कारक ग्रह चंद्र से सातवें मारक भाव में व माता के भाव चतुर्थ भाव से  आठवें भाव में है। बुध चतुर्थ भाव से द्वितीय भाव में है।08 जून 2011 को इनके पिता श्री की भी मृत्यु हो गई। दशा थी शनि -गुरु -शनि की। ज्योतिष में चतुर्थ भाव को पिता का मृत्यु भाव माना गया है। शनि चतुर्थेश मंगल के साथ राशि परिवर्तन योग में है। गुरु शनि को पांचवी दृस्टि से देख रहा है। 

इस प्रकार श्री श्री रविशंकर एक सम्बुद्ध रहस्यदर्शी व परोपकारी संत हैं। हमारी परमपिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वे आगामी कई वर्षों तक मानवता की सेवा करते रहें।  

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