संतोँ की वाणी —-शिवपुरी बाबा

शिवपुरी बाबा भारत के एक  महान  संत थे। इनका  जन्म केरल के एक ब्राह्मण परिवार में 1826 ईस्वी में हुआ था। उनकी मृत्यु 28 जनवरी 1963 को हुई थी। इस प्रकार वे लगभग 137  वर्ष तक जीवित रहे।यह हमारा सौभाग्य है की उनकी जीवन कथा हमें आज भी एक पुस्तक के रूप में उपलब्ध है। (Long Pilgrimage:The life and teaching of Sri Govindananda Bharti known as the Shivpuri Baba London:Hodder &Stoughton,1965–Bennet John G ,with Thakur Lal Manandhar)

उनके दादा श्री एक ज्योतषी थे। वे स्वयं भी नर्मदा नदी के तट पर ईश्वर की तलाश कर रहे थे। वे चाहते थे की उनकी उनकी मृत्यु के बाद शिवपुरी बाबा  तब तक ध्यान करते रहें जब तक की वे भगवान्  के दर्शन न कर लेँ। उसके बाद वे  न केवल भारत बल्कि समस्त संसार की पैदल यात्रा करें।उनके दादा  श्री ने ऐसी भविष्यवाणी भी की थी। शिवपुरी बाबा 18 वर्ष की आयु में ही ईश्वर की तलाश के लिए निकल  पड़े।अपनी पैतृक सम्पति उन्होंने अपनी बहन के नाम कर दी और वे अपने दादा  के पास नर्मदा  नदी के तट पर रहने लगे। अपने दादा श्री की मृत्यु के बाद उन्होंने संन्यास ले  लिया  और  वे गोविंदानंद भारती बन गए। शिवपुरी बाबा तो वे इसलिए कहलाए क्योंकि अपने अंतिम समय में वे नेपाल में शिवपुरी के जंगलों में रहते थे।उनका असली नाम किसी को नहीं पता।

संन्यास लेने के बाद वे घने जंगलों में चले गए और 25 वर्षों तक वे बिलकुल एकांत में रहे। यहाँ तक की उन्हें 1857 के भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम का भी कुछ पता नहीं चला। 50 वर्ष की आयु में उन्होंने भगवान की अनुभूति प्राप्त की और फिर उन्होंने अपनी यात्रा शुरू की। वे भारत के सभी तीर्थ स्थानों पे गए। अपनी तीर्थ यात्रा के दौरान वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस व महृषि श्री अरविन्द  से भी मिले।भारत की ही नहीं उन्होंने अफगानिस्तान ,पर्सिया ,मक्का ,जेरूसेलम ,टर्की ,रोम व यूनान की यात्रा भी की। यूरोप के बहुत  से  देशों की यात्रा करने के बाद वे इंग्लैण्ड में गए। उस समय महारानी विक्टोरिया केवल सात वर्ष की थी और इंग्लैंड पर जॉर्ज IV का शासन था। उनकी जीवनकथा के अनुसार उन्हें  18 बार महाराजा के महल में  मंत्रित किया गया था। वे शायद भारत के पहले संत थे जिन्हें इंग्लैंड के राजमहल  में मंत्रित  किया गया  था। 1901 ईस्वी में वे अमेरिका भी गए थे  और वहां उन्होंने राष्ट्रपति रूज़वेल्ट से भी मुलाकात की थी। अपनी यात्राओं के दौरान वे न्यूज़ीलैण्ड ,कनाडा ,जापान व चीन में भी गए थे। अपने जीवन में उन्होंने लगभग 25000 किलोमीटर  की यात्रा की और 80 प्रतिशत यात्रा पैदल ही की। लगभग 120 वर्ष की आयु में उन्होंने शिवपुरी भी छोड़ दी और काठमांडु के पशुपतिनाथ मंदिर से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर ध्रुवस्थली  के जंगलों में चले गए। अन्तिम दिनों में उन्हें कैंसर भी हो गया था। जब डाक्टरों ने जबाब दे दिया तो उन्होंने योगिक क्रियाओं द्वारा अपना कैंसर स्वयं ही ठीक कर  लिया था।लेकिन वे अपनी योगिक शक्तिओं का प्रयोग बहुत कम ही करते थे। शरीर त्यागने से पहले उन्होंने थोड़ा सा पानी पीया और फिर दायीं करवट लेट कर बोले “गया”।इसके बाद उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। उनका अंतिम सन्देश था ” Live Right Life,Worship God.That is all.Nothing More.” बाद में भारत के राष्ट्रपति डा.एस.राधाकृष्णन ने  उनके इन शब्दों पर पन्द्रह मिनट का भाषण दिया था। उनकी जीवनकथा लिखने वाले लेखक श्री जे जी  बेनेट ने लिखा है “He was a true saint who produced an immediate and uplifting effect on everyone who was in his presence.”

शिवपुरी बाबा की धार्मिक शिक्षाएं बहुत ही साधारण थी।उनकी नैतिक व आध्यात्मिक  शिक्षाओं को सारांश रूप में निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त  किया जा सकता है।

(1)परिवार ,समाज व कार्यस्थल पर अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा व ईमानदारी से करें।

(2) अपने शरीर को स्वच्छ व स्वस्थ रखने का प्रयास करें। दिन में कितना समय किस काम पर लगाना है इस बात का पूरा ध्यान रखें व अपनी बनाई गई समय सारिणी  का पालन करें।

(3) भागवत गीता के सोलवें अध्याय के पहले तीन श्लोकों में वर्णित 26 सात्विक गुणों का पालन करें।

(4)लोगों को हानि  न पहुचायें व आवयश्कता पड़ने पर उनकी मदद करें।

(5) अपनी आय का दस प्रतिशत सामाजिक कार्यों में व निर्धन लोगों की भलाई के लिए खर्च करो । आय का तीस प्रतिशत अपनी भविष्य की जरूरतों के लिए बचा कर रखो।

(6)हमेशा अच्छा व आध्यात्मिक साहित्य पढ़ें। अपने मानसिक विकास पर पूरा ध्यान दें। स्वस्थ मस्तिष्क होने पर ही हम अपने सांसारिक कर्तव्यों का ठीक ढंग से पालन कर सकते हैं तथा ईश्वर को  प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

(7) ईश्वर की  उपासना व ध्यान में निरन्तर व अधिकतम समय लगाएं। पहले उसके साकार स्वरूप व फिर निराकार स्वरुप का ध्यान करते रहें। एक दिन आपको अचानक परमात्मा की अनुभूति हो जाएगी।

(8) परमात्मा की  अनुभूति होने  के बाद आपकी सब समस्याएं हल हो जाएंगी व आपको जन्म मरण से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन इस जनम में आपको अपनी प्रारब्ध के हिसाब से पूरा जीना ही होगा ,तुरन्त आपकी मृत्यु नहीं होगी। 

उपरोक्त विवरण से यह पता चलता है की उनका जीवन व शिक्षाएं तो साधारण थी पर उनका व्यक्तित्व बहुत महान था। निःसंदेह शिवपुरी बाबा एक महान कर्मयोगी थे।उनकी पांचवी शिक्षा जिसमे उन्होंने अपनी आय का दस प्रतिशत भाग दूसरों की भलाई के  लिए व सामाजिक कार्यों के लिए तथा तीस प्रतिशत भाग भविष्य की जरूरतों के लिए बचा कर रखने के लिए कहा है,आज की पीढ़ी के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है।  

व्यावहारिक सुझाव :-शिवपुरी बाबा के जीवन दर्शन को व्यावहारिक रूप से ओशो की  निम्नलिखित ध्यान विधि से समझा जा सकता है। यह विधि महागीता भाग-3  पृष्ठ 81से ली गयी है।

“इसलिए तुम छोड़-छाड़ कर भागने की मत सोचना। जहां हो ,जैसे हो ,उसी स्थिति में  कर्ता-भाव को विसर्जित करो। कर्ता -भाव को समाप्त हो जाने दो। धीरे-धीरे अकर्ता- भाव  से करते रहो जो कर रहे थे। कल भी किया था ,आज भी करो वही। बस इतना सा फर्क पीछे से खिसका  लो कि करने वाले तुम न रह जाओ। कल  भी दुकान गए थे ,आज भी जाना है। कल भी ग्राहक को बेचा था ,आज भी बेचना है।  बस,इतना फर्क कर लेना है कि कर्ता -भाव सरका लेना है। कल मालिक की तरह दुकान पर गए थे ,आज ऐसे जाना है कि मालिक परमात्मा है ,तुम तो केवल नौकर -चाकर। और तुम अचानक फरक पाओगे –चिंता गई ,झंझट गई। ग्राहक ले ले तो ठीक ;न ले तो ठीक। मालकियत क्या गई कि सारा पागलपन गया।

इतना ही हो जाए ,तो तुम धीरे -धीरे पाओगे –जहां थे वहीँ ,जैसे थे वहीँ,धीरे धीरे परमात्मा तुम्हारे भीतर जाग गया ,उतर गई रोशनी ,अवतरण हुआ। “

ओशो की इस ध्यान विधि में यथाशक्ति दान ,ध्यान व स्वाध्याय जोड़ लें। यही शिवपुरी बाबा का जीवन दर्शन है।   

 

 

 

 

 

 

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