20 जैसा की भाग एक में लिखा जा चुका है कि www.astrosage.com में पंडितजी का जन्म समय रात्रि आठ बजे दिया हुआ है जब की ज्योतिष रत्नाकर पुस्तक में जन्म समय घटी पल में दिया है और वह समय शाम छः बज कर 54 मिनट 20 सैकिंड बनता है ! पिछले दिनों में एक और वेबसाइट देखने को मिली(www.ganeshaspeaks.com) जिसमे जन्मसमय सांय 07 बजे का दिया हुआ है ! इस अंतिम किश्त में मैं दशाओं व वर्गकुंडलियों का प्रयोग करके यह बताना चाहता हुं की मालवीय जी का ठीक जन्म समय सांय 06 :58 :08 बजे का है !
रात्रि आठ बजे का जन्म समय लेने पर जन्म दशा दशा चंद्र -शुक्र -चंद्र आती है !ज्योतिषशास्त्र का एक सिद्धांत है कि 70 -75 प्रतिशत मामलों मेँ जन्म के समय प्रत्यन्तर्दशा लग्नेश की या चंद्र लग्नेश की ही होती है !अतः यह समय भी ठीक हो सकता है!क्योंकि मालवीय जी की कुंडली में चंद्र न केवल लग्नेश है बल्कि चंद्र हस्त नक्षत्र में होने के कारण लग्नेश का नक्षत्रेश भी है ! अगर 18 :54 :20 बजे का जन्म समय तनिक संशोधित करके 18 :58 :08 कर दिया जाये तो जन्म दशा चंद्र -केतु – बुध आती है ! अतः यह समय भीं ठीक हो सकता है !क्योंकि बुध चंद्र लग्नेश है ! 18 :58:08 व 20:00 :00 के बीच जो दो प्रत्यन्तर दशाएं सूर्य व शुक्र की हैं उनमें भी जन्म हो सकता है क्योंकि सूर्य नवांश लग्नेश है तथा शुक्र लग्न को देखता है !अगर जन्म समय 20 :17 तक भी लिया जाये तो भी प्रत्यन्तर्दशा चंद्र की ही आती है ! अब तक की चर्चा से यह स्पस्ट है की मालवीय जी का जन्म समय 18 :58 08 बजे से 20 :17:00 बजे तक किसी समय हो सकता है ! इस समय लगन के अंश 05 :03 से 22 :10 तक आते हैं ! अब हमें यह देखना है की मालवीय जी के जन्म के समय द्रेष्कोण कौन सा था !
द्रेष्कोण का प्रयोग मुख्य रुप से भाई-बहनो के लिए किया जाता है ! मालवीय जी के बारे में इतना ही पता है की वे अपने माँ-बाप की पांचवी संतान थे तथा उनके पांच भाई व दो बहनें थी 1अगर उनका जन्म प्रथम द्रेष्कोण में 18 :58 :08 बजे का माना जाए तो उनके जनम से पहले चंद्र ,मंगल , गुरु व शनि की अंतर्दशाएं ऐसी हैं जिनमें बड़े भाई बहन का जनम हो सकता है क्योंकि इन सभी का संबध द्रेष्कोण में एकादश भाव या एकादशेश से बना हुआ है 1 इनके जनम के बाद चंद्र की महादशा में शुक्र की तथा मंगल की महादशा में गुरु ,शनि ,बुध व शुक्र की अंतर्दशाओं का सम्बन्ध द्रेष्कोण में तीसरे भाव व तृतीयेश से बना हुआ है 1 ऐसा प्रतीत होता है कि इनके तीन छोटे भाई-बहनों का जन्म मंगल की महादशा में गुरु ,शनि व बुध या शुक्र की अंतर्दशा में हुआ होगा 1 अगर हम दूसरे व तीसरे द्रेष्कोण से भी देखें तो कई ग्रहों का संबंध एकादश /एकादशेश तथा तृतीय /तृतीयेश से आता है 1 लेकिन मालवीय जी का जन्म प्रथम द्रेष्कोण में होने का सबसे बड़ा प्रमाण उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं से आता है 1
महर्षि पाराशर के अनुसार प्रथम द्रेष्कोण में उत्पन व्यक्तियों में नारद मुनि के व्यक्तित्व जैसी विशेषताएं मिलेंगी 1 भगवान कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है कि देवऋषिओं में मैं नारद हूँ 1 नारद का एक अर्थ यह भी होता है कि वह जो मानवजाति को ज्ञान प्रदान करके उसे ठीक रास्ते पर ले जाता है 1 धार्मिक कथाओं में नारद मुनि जानबूझ कर मूर्ख जैसे कार्य करते दिखाई देते हैं ताकि वे इसके माध्यम से मनुष्यजाति को सदमार्ग पर प्रेरित कर सकें 1 मालवीय जी ने लोगों को ज्ञान प्रदान करने का व सामाजिक सुधार करने का प्रयास किया 1 छुआछात को समाप्त करने व हरिजन सेवक संघ की स्थापना मेँ उनका महत्वपूर्ण योगदान था 1 बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना इस दिशा में उठाया गया उनका सबसे महत्वपूर्ण कदम था 1हैदराबाद के निज़ाम ने जब बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए चंदा देने से इन्कार कर दिया तो मालवीय जी ने एक सेठ के निधन पर उनकी शवयात्रा में शमिल होकर पैसे बटोरने शुरू कर दिए 1 देखने में यह एक मूर्खतापूर्ण कार्य था ! लेकिन निज़ाम यह बात सुनकर बहुत शर्मिन्दा हुआ और उसने महामना से माफ़ी मांगते हुए विश्वविद्यालय के लिए काफी अनुदान दिया ! नारद मुनि अपने एक हाथ में वीणा रखते हैं और उस वीणा पर संगीत बजा कर हमेशा नारायण भगवान की प्रशंषा में गीत गाकर मस्त रहते हैं ! मालवीय जी को यह गुण विरासत में मिले थे ! उनके पितामह श्री प्रेमधर चतुर्वेदी जी ने 108 बार श्रीमद्भागवत का परायण किया था ! इनके पिता श्री बृजनाथ जी संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे और वे श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर आजीविका अर्जित करते थे ! मालवीय जी प्रात-सांय उपासना व श्रीमद्भागवत और महाभारत का स्वाध्याय उम्र भर करते रहे ! हरिद्धार में हर की पौड़ी पर प्रतिदिन जो आरती होती है उसका शुभ आरम्भ मालवीय जी ने ही किया था ! यह उनकी संगीत व् गायन में रूचि को प्रगट करता है ! मालवीय जी के तीसरे स्थान में चंद्र व् गुरु अपने अपने अष्टकवर्ग में क्रमश 7 व 5 बिंदु होने से बलवान हो कर बैठे हैं जो संगीत व गायन में उनकी रूचि को प्रगट करते हैं ! मैंने यहाँ नारद मुनि के सभी गुणों का विवरण देकर उनका मालवीय जी के व्यक्तित्व के साथ मिलान नहीं किया है ! उक्त विवरण यह प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त है कि मालवीय जी का जन्म प्रथम द्रेष्कोण में हुआ था ! जो पाठकगण द्रेष्कोण के देवऋषियों के बारे में अधिक जानने के इच्छुक हों उन्हें ज्योतिष गुरु स्वर्गीय श्री ए के गौड़ की पुस्तक द्रेष्कोण को पढ़ना चाहिए !
(ii ) द्रेष्कोण के बाद नवांश जानना जरुरी है ! नवांश का प्रयोग मुख्यतया विवाह के लिए किया जाता है ! मालवीय जी का विवाह 1878 ईस्वी में मिर्ज़ापुर की कुंदन देवी से हुआ था! विवाह की तिथि व मास कहीं भी नहीं मिला ! 1878 ईस्वी में (05 -01 -1876 से 03 -08 -1879 ) उन पर दशा थी राहु-शनि की !राहु तो वैसे भी ब्याहु है और शनि सप्तमेश होने के कारण विवाह देने में सक्षम है ! नवांश सिंह यानि के कर्क लग्न का दूसरा नवांश आता है ! प्रथम द्रेष्कोण का दूसरा नवांश मानने का एक कारण और भी है !स्वर्गीय श्री ए के गौड़ ने कर्क लग्न के प्रथम द्रेष्कोण व दूसरे नवांश में जन्म होने से निम्नलिखित गुण बताए हैं ! प्रभावशाली व्यक्तित्व ,उदार ह्रदय ,स्नेही ,विद्वान् ,त्यागमय प्रवृति ,साहसी ,अजेय ,कलाप्रेमी और राजा की तरह जीवन जीने वाले व्यक्ति !मालवीय जी में ये सभी गुण कूट कूट कर भरे हुए थे ! इन्ही महान गुणों के कारण उन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया !व्यक्तियों में पंडित मदनमोहन मालवीय निसन्देह राजा के समान थे ! भाग -1 में जो लग्न व नवांश लग्न बनाया गया है वह साय छ बज कर 54 मिनट 20 सैकिंड बजे का ही है ! अब नीचे ठीक समय की कुंडली दी जा रही है !
21. अब हम मालवीय जी के जीवन की कुछ अन्य घटनाओं का विवेचन दशा के साथ करेंगे !
मालवीय जी की संतानों के बारे में:- इनकी संतानों के बारे में इतना ही पता है की इनके पांच पुत्र व् पांच बेटियां पैदा हुई थी !उनमें से चार पुत्र व् दो बेटियां जीवित बची !इनके सबसे छोटे पुत्र गोविन्द मालवीय का जन्म 1902 ईस्वी में हुआ था ! तिथि व् माह का कहीं भी कोई विवरण नहीं मिला ! 1902 ईस्वी में दशा थी गुरु -मंगल (25 -11 -1901 से 01 -11 -1902 तक )!
इस दशा में संतान प्राप्ति संभव है ! जन्म कुंडली में गुरु नवमेश है तथा मंगल पंचमेश ! सप्तमांश में गुरु तृतीय भाव से नवम भाव को दृष्टि दे रहे हैं और मंगल चतुर्थ भाव में बैठ कर पंचमेशबुध को दृष्टि दे रहे हैं ! इनकी संतानहानि का कारण भी साफ़ दिखाई दे रहा है ! पंचमस्थ मंगल संतान के हानिकारक होता है ! दूसरा सिद्धाँत यह भी लिखा है की पंचमेश पंचम भाव में हो परन्तु शुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो संतान शोक होता है ! मालवीय जी की कुंडली में पंचमेश मंगल पांचवे भाव में है और किसी शुभ गृह से दृष्ट भी नहीं है ! सप्तमांश में भी पंचमेश बुध शनि व मंगल की दृष्टि से पीड़ित है !
मालवीय जी का विवाह 1878 ईस्वी मेँ हुआ ! उनके अंतिम पुत्र श्री गोविंद मालवीय का जन्म 1902 ईस्वी में हुआ ! इन 24 वर्षो में उन पर राहु की व गुरु की महा दशा रही ! लग्न में राहु द्वितीयेश सूर्य के साथ हैं व सप्तमांश के लग्न में हैं ! गुरु लग्न कुंडली व सप्तमांश दोनों कुंडलियों में नवम स्थान को दृष्टि दे रहे हैं ! इस प्रकार राहु व गुरु दोनों ही संतान देने में सक्षम हैं 1 विवाह के बाद राहु की दशा में केतु ,शुक्र ,चंद्र ,व् मंगल का तथा गुरु की दशा में गुरु,शनि,केतु, शुक्र ,चंद्र व् मंगल का संबध पंचम /पंचमेश या नवम /नवमेश से बना हुआ है ! इस प्रकार दस अन्तर्दशाये ऐसी है जो संतान दे सकती हैं ! मालवीय जी की कुल दस संतान ही हुई थी ! हमारे पास अन्य विवरण न होने के कारण हम संतान का विवरण यहीं समाप्त करते हैं!
कैरियर की शुरुआत स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद मालवीय जी संस्कृत में एम.ए. करना चाहते थे परन्तु पारिवारिक परिस्थितयों ने उन्हें इस बात की इजाजत नहीं दी !
इसलिए जुलाई 1884 में मालवीय जी ने राजकीय हाई स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर कार्य करना शुरू किया ! दशा थी राहु — शुक्र की (13 -10 -82 से 13 -10- 85 तक ) ! लग्न कुंडली में राहु नौकरी के छटे स्थान में दूसरे भाव के स्वामी सूर्य के साथ है और दशमांश में लग्न में है ! अन्तर्दशानाथ शुक्र लाभ के एकादश स्थान के स्वामी हो कर पदप्राप्ति के सातवें स्थान में लग्न कुंडली में तथा दशमांश में दूसरे व पदप्राप्ति के सातवें स्थान के स्वामी हो कर नौकरी देने में पूर्णतया सक्षम हैं !
वकालत शुरू करना -मालवीय जी ने 1891 ईस्वी में एल एल बी करने के बाद उसी वर्ष इलाहबाद जिला न्यायलय में वकालत शुरू कर दी !दशा थी गुरु -गुरु (26 -03 -1889 से 14 -05 -1891 तक ) व गुरु -शनि (14 -05 -1891 से 24 -11 -1893 )! दोनों ग्रहों का सम्बन्ध न्यायलय के नवम भाव से बना हुआ है ! बाद में 1909 या 1911 में जब शनि -बुध या शनि -केतु की दशा थी तब इन्होंने वकालत छोड़ दी तांकि ये समाज सेवा के कार्य में अपना पूरा समय लगा सके जो की शनि की प्रकृति के अनुरूप ही है क्योँकि शनि आम आदमी का प्रतिनिधि ग्रह है !यह ग्रहों का कमाल ही है कि 1922 में शनि -गुरु की दशा में (13 -09 -1921 से 26 -3 1924 तक ) चौरी -चौरा कांड के अभियुक्तों की वकालत के लिए इन्होने फिर मुकदमा लड़ा व 153 अभियुक्तों को फांसी के फंदे से बचाने में सफल रहे !
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रखना — हिन्दू विश्वविद्यालय की नीव 04 -02 -2016 को बसंत पंचमी के दिन रखी गई थी! 01 -01 -2016 से 28 -02 -2016 तक मालवीय जी पर शनि-सूर्य -शुक्र की दशा थी ! शनि सप्तमेश है !
सातवां स्थान भवन का वैकल्पिक स्थान है !लग्न कुंडली में अन्तर्दशानाथ सूर्य का संबध चतुर्थ/चतुर्थेश के साथ नहीं है ,परन्तु चतुर्थांश में सूर्य शनि से दृष्ट है व् भवन निर्माण की पुष्टि कर रहा है ! शुक्र लग्न कुंडली व् चतुर्थांश दोनों में चतुर्थेश है! चतुर्थांश में महादशानाथ शनि लग्नेश चंद्र से दृष्ट है व अन्तर्दशानाथ सूर्य लग्नेश से युत है ! इस प्रकार शनि -सूर्य -शुक्र में भवन निर्माण की पुष्टि होती है !
यरवदा करार पर हस्ताक्षर करना :- महात्मा गांधी 1932 में पुणे की यरवदा जेल में थे ! ब्रिटिश सरकार ने दलितों के लिए पृथक निर्वाचन पद्धति स्वीकार की थी ! गांधी जी इस नीति के घोर विरोधी थे !इसलिए उन्होंने जेल में ही 20 सितम्बर 1932 को उपवास शुरू कर दिया ! उनके उपवास की खबर ज्योही देश भर की अख़बारों में छपी तो देशभऱ में इसकी व्यापक प्रतिकिर्या हुई ! इस समस्या का हल निकालने के लिए राष्ट्रीय नेताओं की कई बैठकें हुई ,जिसका परिणाम यरवदा करार ,जिसे पूना पैक्ट भी कहते है,के रूप में सामने आया ! 24 सितम्बर 1932 को यरवदा जेल में बंद गांधीजी के सामने भारत के दलितों की ओर से डाक्टर भीमराव अम्बेडकर और एम सी राजा द्वारा तथा सवर्ण हिन्दुओं की ओर से पंडित मदन मोहन मालवीय ने हस्ताक्षर कर एक करार किया जिसके अंर्तगत साम्प्रदायिक अधिनिर्णय में संशोधन के साथ दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचन मंडल को त्याग कर प्रांतीय विधान मंडलों में 71 के स्थान पर 147 स्थान और केंद्रीय विधायका में कुल सीटों की 18 प्रतिशत सीटें दी गई ! मालवीय जी पर 20 -08- 1932 से 25 -09 -1932 तक दशा थी बुध -चंद्र -शुक्र की ! ज्योतिष शाष्त्र में तीसरा स्थान व बुध ग्रह लिखित समझोते को प्रकट करते हैं ! सातवा स्थान अनुबंध का है ! जन्म कुंडली में बुध तृतीयेश होकर छटे स्थान में है ! चंद्र लिखित समझोते के तीसरे भाव में सप्तमेश के साथ है व सूर्य तृतीयेश के साथ छटे भाव में है ! नवमांश में बुध तीसरे भाव को दृष्टि दे रहे हैं ! चंद्र ,सूर्य अनुबंध भाव के स्वामी शनि से दृष्ट होकर बाहरवे भाव में राहु -केतु अक्ष में हैं ! छः बाहरे भाव व राहु -केतू की संलिप्तता शायद विदेशी शासन को व झगड़े को इंगित करती है ! क्योंकि झगड़ा था तभी तो समझोते की जरुरत पड़ी!
(क्रमश )