पंडित मदन मोहन मालवीय – ज्योतिष की नजरों में – भाग 1

पंडित मदन मोहन मालवीय भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद, राजनीतिज्ञ, चिंतक व महान समाज सुधारक थे। भारत सरकार ने 24 दिसंबर 2014 को पंडित मदन मोहन मालवीय जी को भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया। भारत रत्न हमारे देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। इस लेख में हमने भारत के इस महान सपूत की जीवनी का अध्ययन ज्योतिष दृष्टि से करने का प्रयत्न किया है।

इनकी जीवन कथा प्राप्त करने के लिए हमने इंटरनेट सुविधा का लाभ उठाया। इनका जन्म 25 दिसंबर 1861 को रात्रि 8:00 बजे इलाहाबाद में हुआ था। जन्म के समय जो जन्म कुंडली व नवांश कुंडली बनती है वह नीचे दी गई है। इनकी जन्म कुंडली कुछ प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में भी दी गई है जैसे मथुरा से प्रकाशित भगवान दास मित्तल द्वारा लिखित पुस्तक “विश्व के भाग्यवान लोगों की जन्मकुंडलीयां” के पृष्ठ संख्या 81, मोतीलाल बनारसी दास द्वारा प्रकाशित पुस्तक “ज्योतिष रत्नाकर” के पत्र संख्या 967 तथा चौखंबा सुर भारती प्रकाशन वाराणसी द्वारा प्रकाशित “जातक देश मार्ग” के पृष्ठ संख्या 72 पर दी गई जन्म कुंडलियां। इन सभी पुस्तकों में मंगल चौथे भाव में दिखाया गया है जबकि कंप्यूटर गणना से जन्म के समय मंगल पांचवें भाव में आता है।

 

  किसी भी पुस्तक में इनका जन्म समय नहीं दिया है। केवल” ज्योतिष रत्नाकर” पुस्तक में इनका जन्म 30 घटी 17 पल पर लिखा है। www.astrosage.com वेबसाइट में इनकी जन्म कुंडली दी है जिसमें जन्म समय रात्रि 8:00 बजे लिखा है और मंगल भी पांचवें भाव में दिखाया गया है। परंतु 30 घटी  17 पल  शाम को 18:54:20  बजे आते हैं जबकि रात्रि 8:00 बजे 33  घटी 0 पल व  31विपल  आते हैं। इस लेख में हमने ठीक जन्म समय निकालने का भी प्रयास किया है। यह तो इस लेख के  पाठकगण ही बता पाएंगे कि हम अपने प्रयत्न  में  कितने सफल हुए हैं।  

सबसे पहले हम इनकी जन्मकुंडली में उपस्थित ज्योतिष योगों का  अध्ययन करेंगे जिनके कारण वह वह इतने महान व्यक्तित्व के मालिक बने और उन्होंने अपने जीवन काल में देश व समाज के परोपकार के लिए ऐसे काम किए जिन्हें आज भी बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है। पंडित मदन मोहन मालवीय जी की जन्मकुंडली में निम्नलिखित राजयोग/ शुभ योग हैं – 

  1. नवमेश गुरु तीसरे स्थान से चतुर्थेश शुक्र को  पांचवी दृष्टि  से देख रहे हैं। 
  2. सप्तमेश शनि नवमेश गुरु व लग्नेश चंद्र  तीसरे स्थान में एक साथ बैठते हैं। चंद्रमा लग्नेश होने से  तन का  व नैसर्गिक रूप से मन का प्रतीक है। गुरु नवमेश होने से व  नैसर्गिक रूप  से धर्म के प्रतीक हैं तथा शनि निम्न जाति के लोगों का, समाज की मुख्यधारा से पिछड़े हुए लोगों का तथा आम जनता का प्रतीक है। तीसरा स्थान पराक्रम  व प्रयत्न  का है।  इस योग के कारण ही पंडित मदन मोहन मालवीय जी तन और मन से आजीवन धर्म व समाज कल्याण  के रास्ते पर चलते रहे और हमेशा समाज के पिछड़े हुए तथा आम  जनता की भलाई के लिए प्रयत्न करते रहे। मालवीय जी ने छुआ छात को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा उन्होंने हरिजन आंदोलन को एक नई दिशा दी। 
  3. प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में चंद्र, गुरु व शनि की युति के जो  फल बताए गए हैं उनका वर्णन नीचे किया जा रहा है –
    • जातक  आभरण” में श्री श्यामलाल  टीकाकार  लिखते हैं  “जिस मनुष्य  जन्मकुंडली में  चंद्र गुरु व शनि एक राशि में बैठे हों वह मनुष्य चतुर, राजा का प्यारा, श्रेष्ठ, मंत्र शास्त्र में अधिकारी, उत्तम वेश वाला, और बड़ा  प्रतापी  होता है।
    • श्री गोपेश कुमार ओझा ने जातक पारिजात के हिंदी अनुवाद में इन ग्रहों की युति का निम्नलिखित फल लिखा है –  “शास्त्र में निपुण, अधिक  आयु कि स्त्रियों में आसक्त, राजा के समान होता है।
    • शास्त्रों के तत्व को जानने वाला, वृद्ध स्त्री में आसक्त, रोगहीन, ग्राम और जनसमूह का अध्यक्ष होता है – श्री सीताराम झा  सारावली  के हिंदी अनुवाद में।
    • जातक  निरोग, स्त्री का प्रिय, शास्त्रज्ञ, सब व्यवहारों  का ज्ञाता, ग्राम और नगर का पालन करने वाला होता है। – मानसागरी

इस प्रकार से लगभग सभी ग्रंथों में यह माना गया है कि इस युति वाला जातक, राज दरबार में विशेष प्रतिष्ठा पाने वाला, शास्त्रों  व मंत्रों के  रहस्य  को जानने वाला व जनसमूह का नेता होता है। पंडित मदन मोहन मालवीय में उक्त सभी गुण भरपूर मात्रा में विद्यमान थे। अंग्रेज जज  तक उनकी तीव्र बुद्धि पर आश्चर्य प्रकट करते थे।  मालवीय जी संस्कृत, हिंदी व अंग्रेजी तीनों ही भाषाओं के ज्ञाता थे। व्यक्तियों  में पंडित मदन मोहन मालवीय निसंदेह राजा के समान थे।  इसलिए इन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया।

  1.  चंद्र, गुरु  तथा शनि  के योग के बारे में ज्योतिष विद्यार्थियों के लिए एक बात ध्यान में रखने की है कि लग्नेश केंद्र व त्रिकोण दोनों का स्वामी माना गया है।  अतः चंद्र गुरु व शनि दोनों के साथ अलग-अलग राजयोग  बनाता है। गुरु और शनि एक अलग राजयोग का निर्माण करते हैं।  इस प्रकार इस युति  में  तीन राजयोग  उपस्थित हैं।  यह ठीक है कि गुरु षष्ठेश व शनि अष्टमेश भी है परंतु यह बात इन राजयोगों  को रद्द नहीं करती।  
  2.  तीसरा स्थान कंठ, रुचिकर कार्य, लेखन क्रिया, पत्राचार, गायन  और कलात्मक योग्यताओं का होता है।  मालवीय जी की संगीत,  काव्य  व  गायन में अच्छी रुचि थी।  बचपन ने इन्होंने बाकायदा सितार पर शास्त्रीय  संगीत कि शिक्षा भी ली थी।  उनके तीसरे स्थान में चंद्र व गुरु अपने अपने अष्टक वर्ग में क्रमशः 7  व 5:  बिंदु होने से बलवान होकर बैठे हैं जो संगीत व गायन  में इनकी रुचि व योग्यता प्रदर्शित करते हैं।  
  3. मंगल जो कि कर्क लग्न के लिए योगकारक ग्रह है  उसे सप्तमेश शनि  तीसरी दृष्टि से देख रहा है।  यह भी एक उत्तम राजयोग है क्योंकि योगकारक ग्रह से एक अन्य  केंद्र का स्वामी  अपना संबंध बना रहा है।
  4. दीन-दुखियों व दलित जनों  का प्रतिनिधि ग्रह शनि मेहनत  के तीसरे भाव से नवम (धर्म  व  भाग्य)  तथा पंचम ( बुद्धि व  मन)  घर को दृष्टि दे रहे हैं।  मालवीय जी ने बहुत  मेहनत से तथा पूरे मन से दीन-दुखी व  दलित लोगों के भाग्य को बदलने का सारी उम्र प्रयास किया। 
  5. नवम भाव पर बलवान नवमेश की दृष्टि से नवम भाव और भी  बलि हो गया है। नवम स्थान  दान, पुण्य,  तीर्थ यात्रा,पूजा, उपासना, भाग्य  सदाचार, प्रसिद्धि, दार्शनिकता  इत्यादि का कारक है। नवम भाव बलवान होने से यह सभी गुण मालवीय जी में कूट-कूट कर भरे हुए थे। 
  6. चतुर्थ व एकादश स्थान के मालिक   शुक्र पर  बृहस्पति  की दृष्टि होने से सप्तम भाव में बहुत बली राजयोग बन गया है। सप्तम स्थान जनता में व्यक्ति की छवि व उसकी  कूटनीतिज्ञ क्षमता को प्रदर्शित करता है। इसी बलवान राजयोग के कारण मालवीय जी जनता में एक ऋषि जैसी छवि रखते थे और बड़े-बड़े कूटनीतिज्ञ फैसले लेने में सक्षम थे।  इन्हीं  गुणों के कारण वह चार बार कांग्रेस के प्रधान बने  तथा  कई अन्य संस्थाओं के मुख्य पदों पर रहे। 
  7. नवांश में मंगल व गुरु  नीच  राशि में है  परंतु  मंगल की  राशि का मालिक  कर्क राशि में है व  उसके  उच्च स्थान के स्वामी की दृष्टि  उस पर है।  इसी प्रकार  शुक्र की  राशि का स्वामी चंद्र से केंद्र में है।  इस तरह दोनों ग्रहों का नीच दोष भंग हो जाता है और यह दोनों ग्रह नीच भंग राजयोग कारक है।  
  8. लग्नेश बुध की राशि में है और बुद्ध चंद्र लग्न से केंद्र में है यह भी  एक राजयोग है।  ऐसे लोग लंबे समय तक खुशहाल जीवन व्यतीत करते हैं।  नवांश में भी लग्नेश शनि की राशि में है और शनि चंद्र लग्न से केंद्र में है।  अतः यह भी राजयोग कारक है।

 

क्रमशः  (To be continued…)

 

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