पंडित मदन मोहन मालवीय – ज्योतिष की नजरों में – भाग 2

        12  पंडित जी की जन्मकुंडली में  तीसरे भाव के स्वामी बुद्ध व छठे भाव के स्वामी गुरु में राशि परिवर्तन योग है I यह परिवर्तन विपरीत राजयोग का निर्माण करता हैI  ज्योतिष ग्रंथों में यह भी लिखा है गुरु अगर मंगल या बुध के साथ हो और जन्म कुंडली में अन्य शुभ योग हो जो व्यक्ति इतना भाग्यशाली होता है कि वह मंदिर धर्मशाला या विद्यालय का निर्माण करता है I मालवीय जी ने अपने जीवनकाल में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की  स्थापना की थी I विश्वविद्यालय के मुख्य भवन का शिलान्यास 4 फरवरी 1916 को बसंत पंचमी के दिन हिंदुस्तान के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने किया था I

         13 जब हम अध्यात्म की बात करते हैं तो पंचम स्थान ईश्वर प्रेम का, नवम स्थान अनुष्ठान का व दशम स्थान  प्रवज्जा का माना जाता है I पंचम स्थान पर व नवम स्थान पर शनि की दृष्टि इस बात की ओर इंगित करती है की धर्म के मामले में पंडित जी सुधारवादी प्रकृति के थे और इनका जात पात व  छुआ छात में कोई विश्वास नहीं था I नवम भाव पर गुरु की भी दृष्टि है जिसके कारण सुधारवादी होने के बावजूद मालवीय जी पुरानी हिंदू संस्कृति में पक्का विश्वास रखते थे I मार्च 1936 में जब दलितों ने रथयात्रा के दिन  कलाराम मंदिर में प्रवेश पाने तथा रथ यात्रा में शरीक होने की पहल की तो मालवीय जी ने कलाराम मंदिर के पुजारियों की उपस्थितिमें उन्हें दीक्षा दी और दीक्षा के बाद ही उन्हें मंदिर में प्रवेश करने दियाI इस प्रकार मालवीय जी ने लोकाचार का पूरा बंधन निभाया I यह  लोका चार का बंधन गुरु की नवम भाव पर दृष्टि के कारण ही निभाया जा सका I

       14.गुरु, बुध व शुक्र   चंद्र से केंद्र व त्रिकोण में स्थित है I  इस प्रकार चंद्र लग्न से सरस्वती योग का निर्माण होता हैI सरस्वती योग व्यक्ति को कवि. प्रसिद्ध, धनी व सब विधाओं में विद्वान बनाता है I मालवीय जी के  ये गुण किसी से छिपे नहीं हैं I वे अपने समय के प्रकांड विद्वान थे I उन्होंने हिंदुस्तान, इंडियन यूनियन, अभ्युदय , लीडर, मर्यादा तथा हिंदुस्तान टाइम्स जैसे प्रसिद्ध समाचार पत्रों का संपादन किया I  1883-84 में छदम नाम मकरंद के नाम से उनकी कई कविताएं हरीश चंद्र चंद्रिका नामक पत्रिका में छपीI धार्मिक व समकालीन कई विषयों पर उनके लेख हिंदी प्रदीप नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए I सरस्वती योग को कला, संगीत व उच्च विद्वता का योग माना जाता है I

      15 तृतीयेश बुध  व षष्टेश गुरु का राशि परिवर्तन योग एक विपरीत राजयोग बनाता हैI इस योग के कारण व्यक्ति लोकप्रिय, सुखी, स्वतंत्र, उत्तम कार्य करने वाला और दूसरों के अनुकूल आचरण करने वाला होता है(respectable and  conduct ) I

        16  मालवीय जी के चतुर्थ भाव में चर  राशि है I चतुर्थेश शुक्र भी सातवें भाव में चर राशि में हैI जैमिनी दृष्टि से शुक्र आत्मकारक है तथा योगकारक मंगल के नक्षत्र में हैप्रयत्न के तीसरे भाव से शुक्र पर गुरु की दृष्टि है Iअगर चतुर्थ भाव में चर  राशि हो तथा चतुर्थेश भी चर राशि में हो तो ऐसे जातक को प्राय कई शहरों में गृहपति  होने का सौभाग्य प्राप्त होता हैI इस योग के कारण मालवीय जी जीवन भर धार्मिक व शिक्षण संस्थानों के निर्माण के लिए प्रयत्नरत रहे और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए जगह जगह से धन एकत्रित करके कई एकड़ जमीन एकत्रित कर सके I

      17  इन योगों के अतिरिक्त मालवीय जी की कुंडली में कई शास्त्रीय योग जैसे रज्जु योग ,केदार योग ,केमद्रुमभंग योग,गजकेसरी योग ,उभयचारी योग ,भाग्य योग ,उत्तामादि धन योग व् राजयोग आदि उपस्थित हैंऐसे  दो  महत्वपूर्ण योगों का विशेष रूप से वर्णन करना चाहूंगाI

(i) ब्रहमा योग :-यह योग  तब बनता है जबगुरु  नवमेश से,शुक्र एकादशेश से व बुध लग्नेश से या दशमेश से केंद्र में हो मालवीय जी की कुंडली में गुरु नवमेश हो कर नवें भाव को देख रहा है ,शुक्र एकादशेश हो कर लग्न से केंद्र में है तथा बुध लग्नेश से केंद्र में हैI यह ब्रह्मा योग का कुछ परिवर्तित रूप है I ऐसा जातक सुशिक्षित ,गुणवान ,दयालु व्  दीर्घायु होता हैI उसे सुशिक्षित व् धार्मिक व्यक्तिओ का सम्मान प्राप्त होता हैI

(ii )राजसम्बन्ध योग :- इस कुंडली का अमात्यकारक चंद्र हैI चंद्र का विस्थापक बुध लग्नेश से केंद्र में स्थित होकर राजसंबध योग बना रहा हैI मालवीय जी का भारत की राजनिति में महत्वपूर्ण स्थान थाI एक वकील के रूप में अंग्रेज़ जज भी उनकी विद्वता के प्रशंषक थे I

 

    कुंडली में पत्रकारिता के योग  :- 

        18. जन्मकुंडली में तीसरा भाव पत्राचार व लेखन का माना जाता हैI हमारे ज्योतिष गुरु दिवंगत श्री अशोक कुमार .गौड़ ने  अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Astrology of Professions में  लिखा है की बुध व गुरू एक पत्रकार के जन्म में महवपूर्ण भूमिका निभाते हैंI अमात्यकारक ग्रह का बुध या / और मंगल से संबध छपाई माध्यम से संचार के लिए आवश्यक हैI चंद्र गुरु व चंद्र शनि का संबध अपेक्षित हैI मालवीय जी की कुंडली में तृतीयेश बुध व षष्टेश गुरू में राशि परिवर्तन योग हैI चंद्र अमात्यकारक होकर तीसरे भाव में गुरु व शनि के साथ है तथा शनि की दशमेश मंगल पर दृष्टि हैI विद्या का कारक बुध छटे भाव राहु के साथ है तथा बुध और राहु का राशि परिवर्तन योग भी हैI राहु विदेशीभाषाओं का और गुरु संस्कृत का प्रतीक हैI मालवीय जी संस्कृत हिंदी और अंग्रेजी तीनो ही भाषाओं के जानकार  थे  तथा तीनो भाषाओँ  में ही इन्होंने पत्रकारिता कीI दरअसल  त्रित्येश -षष्टेश के राशि परिवर्तन से तथा बुध ,गुरु,शनि व चंद्र के अन्तर्सम्बन्धों से ही मालवीय जी  जैसे   महान पत्रकार का जन्म हो सका I

      कुंडली में वकालत के योग  

         19 .जन्मकुंडली में छठा भाव मुकदमेंबाजी  का ,नवा भाव न्यायालय का ,सातवां भाव प्रतिवादी का ,आठवां भाव षड्यंत्र ,पैतृक सम्पति ,दुर्घटना आदि का तथा तीसरा भाव दस्तावेज़ों का होता है I प्रथम भाव व्यक्ति  का स्वयं  का  उसके व्यक्तित्व का होता है I इस प्रकार षष्टेश  नवमेश , सप्तमेश अष्टमेश ,त्रित्येश व लग्नेश के अन्तर्सम्बन्धों से एक वकील का जन्म होता है I  कालपुरुष के  नवमेश व दशमेश गुरु व शनि का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है व् उनका उक्त ग्रहों से संबंध होना चाहिए I 

         मालवीय जी की कुंडली में षष्टेश गुरु व् सप्तमेश शनि तथा लग्नेश चंद्र की  तीसरे भाव में युति होकर न्यायालय के नवम भाव को दृष्टि दे रही है I दस्तावेज़ों  के प्रतीक तृत्येश का मुकदमेंबाजी के प्रतीक षष्टेश से राशि परिवर्तन योग है I इन्ही योगों ने मालवीय जी को वह प्रतिभा दी जिसके बल पर वे  मुकदमों के दौरान दस्तावेज़ी सबूत पेश कर के  मुकदमें पर मुकदमें जीतते गए और थोड़े ही समय में अपनेआप को एक प्रतिभाशाली वकील के रूप में पहले जिला न्यायालय में व् तत्पश्तात उच्च न्यायालय में स्थापित करने में सफल हुए I यहाँ पर यह भी ध्यान  देने की बात है की मुदमेबाजी के छटे भाव में त्रित्येश बुध के साथ द्वित्येश (वाणी ) सूर्य भी हैं I सूर्य एक अधिकारपूर्ण ग्रह है और इसके द्वित्येश होने से ही मालवीयजी इतने अधिकारपूर्ण तरीके से अपना पक्ष न्यायालय  में प्रस्तुत कर पाते थे I इसी प्रतिभा के बल पर चौरीचौरा कांड में फँसी की सजा पाए हुए 170  भारतीओं में से 151 लोगों को मालवीय जी ने फँसी के फंदे से बचा लिया I

                     श्री ए के गौड़ ने अपनी पुस्तक ‘ज्योतिष और आजीविका’ में लिखा है कि  अधिवक्ता बनने के लिए अमात्यकारक का सम्बद्ध दूसरे ,  छटे ,नोवे भाव /भावेश से होना चाहिए I मालवीय जी की कुंडली में अमात्यकारक चंद्र तीसरे भाव में षष्टेश /नवमेश गुरु तथा सप्तमेश/अष्टमेश शनि के साथ बैठ कर द्वितियेश सूर्य ,तृतीयेश/ द्वादशेश बुध तथा नोवे भाव को जैमिनी दृष्टि दे रहा हैI  इस प्रकार हम देखते हैं कि मालवीय जी कुंडली में प्रतिभाशाली अधिवक्ता बनने के सभी योग उपस्थित हैं 1इस योग को व्यावहारिक रूप देने के लिए इन्हे गुरु व् शनि की दशायें भी उप्युक्त समय पर  मिली I मालवीय जी ने 1891  ईस्वी में वकालत पास की और मुख्य रूप से 1913 ईस्वी तक वकालत की I 1913 के बाद केवल 1922 में भारतीय नागरिकों की मदद करने के लिए चौराचौरी केस की वकालत की I

           अब तक किये गए विश्लेषण से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं की मालवीय जी कुंडली उनके जीवन की घटनाओं व व्यक्तित्व को  पूर्ण रूप से उजागर करती है I अब तक मैंने दशा तथा वर्ग कुण्डिलों का प्रयोग नहीं किया है I अपनी अगली व अंतिम किश्त में मैं उनके जन्म समय को  निर्धारित करके दशाओं व् वर्ग कुंडलियों का प्रयोग करके दिखाऊंगा I 

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