ज्योतिष और स्वर विज्ञान–बिना ग्रह/पंचांग देखे सटीक फलादेश की अनुपम विधि।

साँस में हवा के अलावा भी कुछ होता है। भारतीय शास्त्रों में इसी को प्राण कहा गया है। यह हवा के माध्यम से प्रवाहित  होने वाली दिव्य ऊर्जा है। अस्पताल में कुछ समय गुजारने के बाद या बीमार आदमी के पास कुछ देर बैठने से या ज्यादा भीड़ वाली जगह पर आपको इसीलिए ज्यादा थकान या घुटन महसूस होती है क्योंकि वहां अन्य लोगों द्वारा आपकी प्राण ऊर्जा ज्यादा चूसी जाती है। जबकि किसी ऊर्जावान व्यक्ति से मिलकर हम अपने भीतर भी अधिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं। यह सब सांस के साथ जो प्राण ऊर्जा होती है उसी के आदान प्रदान के कारण होता है। स्वर विज्ञान का अर्थ सांस में जो यह प्राण ऊर्जा होती है उसी के विज्ञान से है। 

जब हम सांस लेते हैं तो सांस हमारी नाक से भीतर जाकर शरीर के जिन जिन मार्गों से गुजरकर लोट जाती है ,उसको ‘नाड़ी ‘ कहते हैं। स्वर विज्ञान के अनुसार हमारे शरीर में 7200 नाड़ी होती हैं। यह नस या नर्व नहीं होती ,बल्कि यह हमारे में प्राणवायु को संचालित करने का मार्ग होती हैं। ये नाड़ियां हमारे शरीर के नाभिकेन्द्र में अंकुर की तरह निकल कर पूरे शरीर में व्यवस्थित ढंग से फैली हुईं हैं। नाभि के उपर और नीचे निकलनेवाली ये नाड़ियां शरीर में जहां आपस में मिलती हैं ,वहां ये चक्र का आकार बना लेती हैं। इन चक्रों का आध्यात्म और योग में बहुत महत्व है। इन चक्रों के बारे में अतिरिक्त जानकारी प्राप्त करने के लिए इस वेबसाइट पर 29 अप्रैल 2023 को प्रकाशित मेरे लेख ,”नवरात्र व्रत यानि वर्ष में दो बार चक्र साधना का अवसर “पढ़ें।  ऊपर हमने नाड़ियों की बात की। योग में चौबीस प्रमुख नाड़ियों की बात की जाती है।लेकिन ज्योतिष के लिए केवल तीन नाड़ियों के बारे में ही जानकारी प्राप्त करना अनिवार्य है। ये नाड़ियां हैं — इड़ा ,पिंगला और सुषुम्ना।  पूरा स्वर-शास्त्र इन्हीं तीन नाड़ियों पर केन्द्रित है। 

इड़ा नाड़ी शरीर के बाएं भाग में स्थित होती है। इसे चंद्र नाड़ी ,चन्द्र स्वर या बाईं नाड़ी भी कहा जाता है। इड़ा नाड़ी स्त्री प्रधान है। पिङ्गला नाड़ी शरीर के दाहिने भाग में होती है। इसे सूर्य नाड़ी ,सूर्ये स्वर या  दाईं नाड़ी भी कहते हैं। यह पुरुष प्रधान है।सुषुम्ना नाड़ी शरीर के मध्य भाग में होती है।इड़ा नाड़ी चंद्रमा की ,पिंगला नाड़ी सूर्य की और सुषम्ना नाड़ी अग्नि की कही गई है। 

स्वर शास्त्र के अनुसार जब हम स्वास लेते हैं तो एक वक्त में हमारी एक नासिका अधिक खुली होती है। हम उसी से ज्यादा सांस लेते हैं। प्रत्येक एक घंटे के बाद दूसरी नासिका चलने लगती है। हम उससे सांस लेने लगते हैं। बाईं नासिका चलने पर वह इड़ा नाड़ी का चलना कहलाता है। दाईं नासिका का चलना पिंगला नाड़ी का चलना कहलाता है। दोनों नाड़ियों का आपस में चलने का क्रम सदैव चलता रहता है। जब इड़ा बंद होकर पिंगला चलने को होती है या पिंगला बंद हो कर इड़ा चलने को होती है तो बीच में चार मिनट तक हमारी सांस दोनों नासिकाओं से चलती है। जब सांस दोनों नासिकाओं से आ जा रही होती होती है तो उसे सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं। स्वरशास्त्र के अनुसार नाक से ग्रहण की जाने वाली सांस ही हमारे प्राण हैं। आपको यह जान कर हैरानी होगी की अगर हमें इस सांस की गति और दिशा को ठीक प्रकार से जानना और नियंत्रित करना आ जाए तो हम योगी हो जाते हैं और हमारे से कई आश्चर्येजनक काम होने लगते हैं। 

वृन्दावन के प्रसिद्ध संत  देवराहा बाबा इसके उदाहरण हैं। वे लगभग 250 वर्ष तक जीवित रहे। भारत के बड़े बड़े राजनेता यथा भारत के प्रथम राष्ट्र्पति डॉ राजेंद्र प्रसाद व कई प्रधानमंत्री यथा विश्वनाथ प्रतापसिंह ,चंद्र शेखर ,राजीव गांधी व अटल बिहारी वाजपेयी इत्यादि अपने जीवनकाल में उनका आशीर्वाद प्राप्त करते रहे। एक बार किसी ने उनसे लंबी आयु का रहस्य पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया “अरे बचवा ! दिन में चलावे चंद्र और रात चलावे सूर्य ,सो योगी हुई जावे। ”  उनका कहने का मतलब यह था की जिसे दिन में चंद्र नाड़ी और रात को सूर्य नाड़ी चलाने की कला आ जाए वह योगी हो जाता है। यही उनकी दीर्घ आयु का रहस्य था। देवराहा बाबा ने वर्ष 1990 में समाधि ली थी।इस उदाहरण से स्पष्ट है की जिस किसी को भी नाड़ी की गति और दिशा पर नियंत्रण करना आ जाए उससे कई चमत्कार होने लगते हैं। 

स्वर विज्ञान के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम हमें नाड़ी की पहचान करनी आनी चाहिए की हमारी कोन सी नाड़ी चल रही है। इसके लिए आंख बंद करके हाथों द्वारा नाक के छिद्रों से बाहर निकलती हुई सांस को महसूस करने का प्रयास करें। अगर दाहिने छिद्र से सांस बाहर निकल रही हो तो समझें कि पिंगला या सूर्य नाड़ी चल रही है। अगर सांस बाएं छिद्र से निकल रही हो तो समझें कि इड़ा नाड़ी या चंद्र नाड़ी चल रही है।यदि दोनों छिद्रों से समान वेग से सांस निकलती महसूस करें तो समझों की सुष्मना नाड़ी चल रही है। सुष्मना नाड़ी को शून्य स्वर भी कहा जाता है। यानि के इड़ा नाड़ी शरीर के बाई तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दाहिनी ओर तथा सुष्मना नाड़ी मध्य में स्थित है।अगर हम अपनी नाड़ी को व्यवस्थित करना सींख जाएं तो हम बहुत कुछ ऐसा कर सकते हैं जिसे आम भाषा में चमत्कार कहा जाता है। इस योग्यता का प्रयोग तंत्र और योग में किया जाता है। ज्योतिष के क्षेत्र में नैसर्गिक रुप से चल रहे स्वर का ही अधिकतर प्रयोग किया जाता है प्रायोजित नाड़ी का नहीं । 

इड़ा और पिंगला नाड़ी के एक घंटे के प्रवाह काल में पांचों तत्वों –पृथ्वी,जल ,अग्नि ,वायु और आकाश का उदय होता है। लेकिन तत्वों की पहचान करने के लिए काफी अभ्यास की आवयश्कता होती है। नाड़ी ज्योतिष में महारत हासिल करने के लिए नाड़ी और तत्त्वों की पहचान होना आवश्यक है। 

दक्षिण भारत के  एक प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथ  “प्रश्न मार्ग ” में  नाड़ी ज्योतिष का प्रयोग व्यापक तौर पर किया गया है। यह ग्रंथ 1649 ईसवी के आसपास केरल प्रदेश के श्री नारायणन नम्बूदरी द्वारा लिखा गया था। उसके कुछ सूत्र पाठकों की जानकारी के लिए प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

प्रश्न मार्ग के द्वितीय अध्याय के श्लोक अठाइस में लिखा है कि ज्योतिषी को सूर्योदय से पहले प्रतिदिन स्वर और तत्व का परीक्षण करना चाहिए। इसके आधार पर अपना शुभ अशुभ फल जानना चाहिए। जब कोई प्रश्नकर्ता पूछने आए तो उस समय के स्वर के आधार पर प्रश्न का और गुम हो गए या चोरी हो गए यानि के नष्ट पदार्थ के बारे में बताना चाहिए। 

1.सोमवार ,बुधवार ,गुरुवार और शुक्रवार को वाम स्वर  यानि चंद्र स्वर /इड़ा स्वर  तथा मंगलवार ,रविवार और शनिवार को दक्षिण स्वर यानि के सूर्य /पिंगला स्वर चलना शुभ होता है।

2. शुभ वारों को (सोमवार, बुधवार ,गुरुवार और शुक्रवार ) को वाम स्वर और अशुभ वारों (मंगलवार ,रविवार और शनिवार) को  दक्षिण स्वर चले तो मधुर भोजन ,स्वास्थय ,धन का लाभ होता है और अभीष्ट कार्य सिद्ध होते हैं। यानि इसके विपरित स्वर चले तो  मधुर भोजन और धन का लाभ नहीं होता। सबसे कलह होती है। सुखपूर्वक नींद नहीं आती। मल त्याग का कष्ट होता है। 

3 . रविवार को प्रतिकूल स्वर हो तो शरीर में वेदना ,सोमवार को कलह ,मंगलवार को दूर की यात्रा /मृत्यु भय , बुधवार को राज्य से आपत्ति ,गुरु और शुक्रवार को हर कार्य में असफलता और शनिवार को बल और खेती का नाश तथा भूमि विवाद होता है। इस श्लोक में प्रत्येक वार को विपरीत स्वर चलने का फल बताया गया है। 

4. द्वितीय अध्याय के 32 -33 श्लोक में लेखक ने यह बताया है कि अगर आठ दिन तक एक ही स्वर चले तो क्या फल होगा।किस वार से कोन सा स्वर आठ दिन तक चलने से क्या फल होगा यह बताया गया है।यदि सोमवार से निरंतर आठ दिन तक दक्षिण स्वर चले तो पुत्र पर आपत्ति , मंगलवार से निरंतर वाम स्वर चले तो शत्रु से बंधन , बुधवार से निरंतर दक्षिण स्वर चले तो गुरु की मृत्यु की संभावना ,शुक्रवार से निरंतर दक्षिण स्वर चले तो भूमि के विवाद के कारण धननाश और शनिवार से निरंतर आठ दिन तक वाम स्वर चले तो स्त्रीनाश या घर का नाश होता है। रविवार से आठ दिन तक निरंतर एक स्वर चले तो गुरु की मृत्यु अथवा भयंकर व्याधि होवे। 

स्वरशास्त्र के जानकार यह जानते हैं और हम पहले बता भी चुके है की सोमवार ,बुधवार ,गुरुवार और शुक्रवार को वाम स्वर  यानि चंद्र स्वर /इड़ा स्वर  तथा मंगलवार ,रविवार और शनिवार को दक्षिण स्वर यानि के सूर्य /पिंगला स्वर चलना शुभ होता है। श्लोक 32 -33 में यह बताया गया है की आठ दिन तक लगातार विपरीत स्वर चले तो क्या फल होते हैं।

इन श्लोकों में यह नहीं बताया गया है कि रविवार को कोन सा स्वर चले तो गुरु की मृत्यु अथवा भयंकर व्याधि होवे। इसका या तो यह अर्थ हो सकता है कि रविवार से आठ दिन तक चाहें कोई भी स्वर चले तो गुरु की मृत्यु अथवा भयंकर व्याधि होवे या यह भी हो सकता है की अगर रविवार से आठ दिन तक अगर वाम स्वर चले तो गुरु की मृत्यु अथवा भयंकर व्याधि होवे। 

5.34 वें श्लोक में लेखक ने यह बताया है कि अगर श्वांस की लम्बाई 16 अंगुल की हो तो पृथ्वी तत्व ,12 अंगुल की हो तो जल तत्व ,8 अंगुल की हो तो अग्नि तत्व ,6 अंगुल की हो तो वायु तत्व  , 3 अंगुल की हो तोआकाश तत्व का संचार होता है। तत्त्वों के बारे में एक मत और भी है। जब भी इड़ा या पिंगला नाड़ी की शुरुआत होती है तो शुरु के चार मिनट आकाश तत्व ,फिर आठ मिनट वायु तत्व ,फिर बारह मिनट अग्नि तत्व ,सोलह मिनट जल तत्व और फिर बीस मिनट पृथ्वी तत्व चलता है। इस तरह एक घंटा पूरा हो जाता है और नाड़ी बदल जाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति की एक -एक घंटा करके इड़ा और पिंगला नाड़ी चलती है।   

स्वर शास्त्र में महारत हासिल करने के लिए स्वरों और तत्वों की पहचान होना जरुरी है। यानि कि यह पहचान होनी चाहिए की कोन सा स्वर चल रहा है और उसमें किस तत्व का संचार हो रहा है। यहां पर यह बताना जरुरी है एक अंगुल की लम्बाई एक अंगुली की मोटाई के बराबर होती है।  

6 .अगर शुक्ल पक्ष की किसी तिथि को इड़ा नाड़ी में पृथ्वी तत्व का उदय हो रहा हो तो राज्याभिषेक की संभावना होती है। किसी और तत्व का उदय हो रहा हो तो भी तालाब या कुएं आदि का निर्माण करता है। लेकिन शुक्ल पक्ष में पिंगला नाड़ी चले तो जल से भय पैदा होता है।

अगर अग्नि तत्व का उदय हो रहा हो तो जल से भय होता है। शरीर में घाव होता है। घर में आग लग सकती है या घर में कोई बच्चा जल भी सकता है। प्रश्न मार्ग के लेखक के अनुसार इस फल की निवृति के लिए इष्ट देवता की आराधना करनी चाहिए। अगर वायु तत्व का उदय हो रहा हो तो चोर से हानि हो सकती है। कहीं पर पलायन करना पड़ सकता है। हाथी घोड़े की सवारी का भी यही अर्थ है की कहीं की यात्रा करनी पड़ सकती है।अगर आकाश तत्व का उदय हो रहा हो तंत्र, मंत्र, यंत्र का उपदेश,देव प्रतिष्ठा ,दीक्षा ,व्याधि की उत्पति और शरीर में निरन्तर पीड़ा उत्प्न्न करता है। 

आगे प्रश्न मार्ग का लेखक कहता है की अगर शुक्ल पक्ष में दक्षिण स्वर यानि के सूर्य /पिंगला स्वर चल रहा हो और ऊपरलिखित तत्वों का संचार हो रहा हो तो भी फल यही समझना चाहिए। 

अगर श्वास की गति अंत तक एक जैसी रहे तो शुभ होती है। परंतु अगर आगे चल कर वह कम गति वाली हो जाए तो अशुभ फल वाली होती है। 

7. अगर नष्ट वस्तु के बारे में प्रश्न पूछा जाए और उस समय पृथ्वी तत्व चल रहा हो तो नष्ट वस्तु भूमि में गड़ी हुई कहें। जल तत्व का उदय तो जल में ,वायु तत्व का उदय होने पर धुएं वाले स्थान में ,आकाश तत्व का उदय होने पर ऊंचे स्थान पर और अग्नि तत्व का उदय होने पर भूमि के पिछले भाग में कहें। इस प्रकार विभिन्न तत्वों के उदय होने पर नष्ट वस्तु से संबंधित प्र्श्न का उत्तर दिया जा सकता है। यह फलादेश इड़ा और पिंगला दोनों स्वरों पर लागु होता है। 

8 . प्रश्न पूछते समय अगर प्रश्नकर्ता उसी और बैठे जिस और का स्वर चल रहा हो और उस समय पृथ्वी या जल तत्व भी उदय हो रहा हो तो प्रश्नकर्ता के लिए दीर्घायु , गुणवान पति /पत्नी  और पुत्र की प्राप्ति  तथा धन की वृद्धि कहनी चाहिए। अगर प्रश्नकर्ता विपरीत दिशा में बैठे और उस समय अग्नि ,वायु या आकाश तत्व का उदय हो रहा हो तो विपरीत फल समझना चाहिए। 

9 . यात्रा के समय इड़ा नाड़ी और गृह प्रवेश , नगर प्रवेश और वधु प्रवेश के समय पिंगला नाड़ी और योगाभ्यास के समय सुषम्ना नाड़ी का चलना शुभ माना जाता है। अन्य सभी कार्यों करते समय सुषम्ना नाड़ी का चलना शुभ नहीं माना जाता। 

10 . जिस समय पुरुष रोगी के बारे में पूछा जाये और प्रशनकर्ता दांयी ओर बैठकर प्रश्न करें और उस समय पिङ्गला नाड़ी भी चल रही हो तो रोगी शीघ्र स्वस्थ हो जाता है और वह दीर्घकाल तक जीवित रहता है। अगर रोगी स्त्री हो ,प्रश्न बांयी और बैठ कर पूछा जाए और उस समय इड़ा नाड़ी चल रही हो तो भी यही कहें कि रोगीणी  शीघ्र स्वस्थ हो जाएगी और वह दीर्घकाल तक जीवित रहेगी। 

11 . अगर रोगी के बारे में प्रश्न करते समय आपकी सांस अंदर प्रवेश कर रही है तो रोगी स्वस्थ हो जाता है लेकिन अगर सांस निकलने के समय प्रश्न किया जाए तो रोगी मर जाता है। 

12 . नष्ट पदार्थ के बारे में प्रश्न पूछा जाए और उस समय पृथ्वी तत्व का उदय हो रहा हो तो नष्ट पदार्थ  पूर्व में , जल तत्व का उदय हो तो दक्षिण में ,अग्नि तत्व का उदय हो तो पश्चिम में ,वायु तत्व का उदय हो तो उत्तर में और आकाश तत्व का उदय हो तो नष्ट पदार्थ मध्य में या अपने स्थान  पर स्थित होता है। 

14 . गर्भिणी की क्या संतान होगी ,इस प्रश्न का विचार करते समय अगर पिङ्गला नाड़ी चलती हो तो पुत्र और इड़ा नाड़ी चलती हो तो कन्या कहनी चाहिए।अगर दोनों स्वर चलते हों तो गर्भ में नपुंसक होता है। 

15 . चंद्र स्वर चलते समय घर से निकल कर सूर्ये स्वर चलते समय अभीष्ट स्थान पर पहुँचे ,तो बगैर प्रयत्न किए दुर्लभ कार्य में सफलता होती है। 

पाठकों की जानकारी के लिए यहां केवल पंद्रह सूत्र दिए गए हैं। प्रश्न मार्ग में ऐसे अनेकों सूत्र उपलब्ध हैं जिनके आधार पर बिना ग्रह /पञ्चाङ्ग देखे सटीक फलादेश किया जा सकता है। अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए पाठक गण कृपया ‘प्रश्न मार्ग ‘- ग्रंथ का अध्ययन करें। 

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