जिन लोगों का भारतीय विद्या भवन के ज्योतिष संकाय से या ज्योतिष गुरु श्री के एन राव से कोई परिचय नहीं है या जो लोग भारतीय इतिहास के बहुत से रहस्यों का ज्यादा ज्ञान नहीं रखते ;उन्हें यह जानकर आश्चर्य होगा की भारत को स्वतंत्र करने की तिथि चाहें अंग्रेज शासकों ने निर्धारित की हो लेकिन उसका समय भारतीय ज्योतिष के मुहूर्त सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए उस समय के महान ज्योतषी व प्रसिद्ध विश्व विजय पञ्चांग के संपादक श्री हरदेव शर्मा शास्त्री ने कांग्रेस नेता श्री राजेंद्र प्रसाद जी के आग्रह पर निर्धारित किया था। स्वतंत्रता के बाद श्री राजेंद्र प्रसाद जी भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत में नया संविधान लागु किया गया। समय 10 :20 बजे माना जाता है। भारतीय गणराज्य की कुंडली इसी समय के (स्थान – देहली ) हिसाब से बनाने का प्रचलन है। पाठकों के अवलोकनार्थ कुंडली नीचे दी जा रही है।मुझे यह नहीं पता की संविधान लागु करने का समय किसी ज्योतिष विद्वान् से पूछा गया था या नहीं। इस बारे में मैंने कहीं कुछ पढ़ा भी नहीं।
अतः इस लेख का उद्देश्य भारतीय गणराज्य की कुंडली पर ज्योतिष के मुहूर्त सिद्धांतों को लागू करके यह देखना है कि यह कुंडली कितनी शुभ है और यह हमारे राष्ट्रीय और संवैधानिक उदेश्यों को प्राप्त करने में किस हद तक सफल होगी ।
26 जनवरी 1950 को शुक्ल पक्ष की अष्टमी थी। अष्टमी तिथि के स्वामी विंध्वंष के देवता शिव है और इसे द्वंद पैदा करने वाली तिथि माना गया है। ज्योतिष की भाषा में इसे जया तिथि कहा जाता है। यह तिथि सेना संबंधी कार्यों , मुकदमें बाजी ,अदालती कार्य निपटाना ,वाहन खरीदना तथा कलात्मक कार्यों जैसे -गायन ,वादन ,नृत्य आदि के लिए शुभ मानी जाती है। गणतंत्र कुंडली शुरु ( 26 जनवरी 1950) होने वाला दिन गुरुवार था। गुरुवार को अष्टमी तिथि होने से अशुभ योग बनता है। इसे ककरच योग कहते हैं और शुभ कार्यों के लिए यह एक वर्जित योग है।लेकिन उस दिन अश्वनी नक्षत्र भी था। अत उस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बनता है जो की एक शुभ योग है।सर्वार्थ सिद्धि योग को सभी कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। इस योग में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं। मुहूर्त चिंतामणि में लिखा है कि अगर एक ही दिन शुभ और अशुभ दोनों योग है तो शुभ योग के फल फलीभूत होते हैं।अश्वनी नक्षत्र लघु /क्षिप्रा (short and dynamic) नक्षत्रों की श्रेणी में आता है। इसके स्वामी अश्वनी कुमार हैं। यह नक्षत्र ऊर्जावान ,सक्रिय ,महत्वाकांक्षी ,जल्दबाज व बैचैन होता है। जल्दबाजी के बावजूद दृढ़ता से अपनी उद्देश्यपूर्ति में लगा रहता है। गुरुवार व अश्वनी नक्षत्र दोनों लघु /क्षिप्रा (short and dynamic) श्रेणी में आते हैं तथा कला और शिक्षा के लिए भी उत्तम माने जाते हैं।गुरुवार धार्मिक कार्यों तथा वित्तीय कार्यों के लिए भी शुभ माना जाता है। उस दिन 10.20 बजे गुरुवार का चोथा होरा था। इसका स्वामी शुक्र है। शुक्र का होरा कला ,संगीत ,प्रेम ,सांसारिक सुख , मनोरंजन,आमोद प्रमोद ,नृत्य ,सौंदर्य व सैक्स को इंगित करता है।शायद इसीलिए हमने कला,शिक्षा ,सैना ,वाहन और मनोरंजन से सम्बन्धित क्षेत्रों में बहुत प्रगति की है।अगर हम तारा का विचार करें तो स्वतंत्र भारत का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ था। अश्वनी नक्षत्र पुष्य नक्षत्र से 21वा नक्षत्र है।अत : विपत तारा बनता है जो की शुभ नहीं है।विपत तारा विपत्ति ,नुकसान ,गलतफ़हमी और संघर्ष को इंगित करता है।
उस दिन शुभ योग था। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति आकर्षक व्यक्तित्व का धनी होता है। समृद्ध भी होता है। पर उसका स्वास्थ्य खराब रहता है और वह स्वभाव से चिड़चिड़ा होता है। करण विष्टि था। विष्टि करण में जन्म होने पर जातक के मित्र नहीं होते। वह बुरे कर्म भी करता है। विष्टि करण होने के कारण उस दिन भद्रा भी थी। सोभाग्य से चंद्रमा मेष राशि में होने के कारण भद्रा निवास स्वर्ग लोक में था।इसलिए भद्रा भारत के लिए अशुभ नहीं थी।सूर्य का उत्तरायण होना अच्छा था।पञ्चाङ्ग के पांच अंगों (तिथि ,वार ,नक्षत्र ,योग व करण ) में केवल करण ही शुभ नहीं था। गणतंत्र दिवस वाले दिन तारा भी शुभ नहीं था।
सबसे शुभ माना जाने वाला ग्रह बृहस्पति है और यह अस्त था। बृहस्पति मकर राशि में होने के कारण भी शुभ नहीं था। शुक्र भी अगले दिन अस्त हो गया था।अस्त होने से तीन दिन पहले और तीन दिन बाद तक गुरु और शुक्र को हीनबली होने के कारण मुहूर्त संबंधी अधिकतर कार्यों के लिए शुभ नहीं माना जाता। संविधान लागू करने जैसे शुभ कार्यों के लिए भी नहीं।
लग्न की बात करें तो स्त्री लग्न (मीन ) है। यह द्विस्वभाव और पृष्ठोदय श्रेणी का होने के कारण संविधान लागू करने के लिए शुभ लग्न नहीं है।गणराज्य की कुंडली में केंद्र व त्रिकोण में कोई शुभ ग्रह नहीं है। केवल त्रिक भावों में (छठे और ग्यारहवें भाव में) अशुभ ग्रह शनि व सूर्य हैं। लग्न ,लग्नेश व चंद्र मध्यम बलि हैं।
उपर लिखित विवरण से स्पष्ट है कि भारत के संविधान को लागु करने के लिए किसी अन्य शुभ समय का चयन किया जाना चाहिए था। भारतीय गणराज्य की कुंडली पर टिपण्णी करते हुए मैं पिछले लेख में लिख चुका हूं कि ,” गणराज्य की कुंडली में सष्टेश सूर्य व एकादशेश शनि में राशि परिवर्त्तन है ,एकादशेश छटे भाव में वक्री है ,दशमेश एकादश भाव में सष्टेष तथा अष्टमेश के साथ अपनी नीच राशि में है।नवमांश में भी एकादशेश बुध वक्री हो कर लग्न में शनि के साथ राहु -केतु अक्ष में है तथा सष्टेष मंगल से दृष्ट है Iगणराज्य की कुंडली में तीन ग्रह वक्री भी हैं और दशाक्रम भी शुभ नहीं है। ज्योतिषीय दृष्टि से यही कुछ कारण हैं जिनके कारण भारत के संविधान में संशोधन होते रहते हैं।मैंने यह भी लिखा था कि भारत की सरकारें पिछले 74 वर्षों में अपनी सुविधा और अपने राजनैतिक एजेंडे के अनुसार समय समय पर संविधान में संशोधन करती रही हैं।”
भारत की गणराज्य कुण्डली में दशा छिद्र का समय चल रहा है। गुरु में मंगल की अंतर्दशा है। 04 जून 2024 को 16. 39 बजे जब मैं यह लेख लिख रहा हूं तो लोकसभा 2024 के चुनाव नतीजे ऐसे आ रहे हैं जैसे कुछ लोगों को उम्मेद नहीं थी। कुछ ज्योतिषियों ने पहले इस और इशारा भी किया था। ज्योतिष के विद्यार्थियों के लिए ऐसा अनुमान लगाना मुश्किल कार्य भी नहीं था। भारतीय विद्या भवन में ज्योतिष गुरु राव सर के इन सिद्धान्तों क़ो पढ़ाया जाता है कि गुरु वृष राशि में हो और शनि का प्रभाव दशम भाव पर हो तो भारत के राजनैतिक दृश्य में बहुत बड़ा परिवर्तन होता है। अब गुरु गोचर में वृष राशि में है और शनि कुम्भ राशि में गोचर कर रहा है जो की भारत के दसवें भाव की राशि है।अतः भारत के राजनैतिक दृश्य में बहुत बड़ा परिवर्तन अवश्यभावी था।
भारत की गणराज्य कुण्डली में मंगल सप्तम भाव में केतु के साथ कन्या राशि में है। सातवे भाव में मंगल -केतु की उपस्थिति संघर्ष,षड़यंत्र ,टकराव ,युद्ध ,जासूसी ,अलगाव इत्यादि को दर्शाती है। दरअसल आने वाला समय भारत की राजनीति के लिए अच्छा समय नहीं है और विभिन्न पार्टियों के नेताओं का रवैया देखकर लगभग सभी राजनैतिक पार्टियों के असली चेहरे जनता के सामने आ जाएंगे। सातवां भाव अंतराष्ट्रीय सम्बन्धों को भी दर्शाता है। अतः अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत सरकार को सतर्कता बरतने की आवयश्कता है विशेषकर इसलिए क्योंकि हमारे कुछ पड़ोसी राष्ट्रों से हमारे संबंध मधुर नहीं हैं।ग्रहों का यह भी संकेत है कि आगामी सरकार को अपने घटक दलों के षड्यंत्र व टकराव का भी सामना करना पड़ेगा। आगामी सरकार के अन्य संकेत प्रधानमंत्री की शपथग्रहण कुंडली व स्वतंत्र भारत की कुंडली देखने के बाद टिपण्णी करूंगा।
मंगल की अंतर्दशा 21 जनवरी 2025 तक चलेगी। उसके बाद 17 जून 2027 तक राहु की अंतर्दशा रहेगी। लग्न में मंगल दृष्ट राहु शुभ नहीं है।तत्कालीन सरकार को साम्प्रदायिक दंगे फैलाने वाले तत्वों से सावधान रहना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा देश के किसी प्रदेश में अराजकता जैसी स्थिति न होने पाए। मंगल -राहु के संयुक्त प्रभाव के कारण अपराधी और अराजक ताकतों से निपटने के लिए पुलिस /सैना द्वारा बलप्रयोग की संभावना है। कुल मिलाकर ग्रहो के संकेत ये हैं कि आने वाले समय में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। आम जनता को संघर्षपूर्ण परिस्थतियों का तथा संविधान की मूल भावनाओं और व्यवस्थाओं का चीरहरण भी देखना है।आगे सब परमेश्वर मालिक है। मुझे तो ज्योतिष सिद्धांतों को देखते हुए ऐसा ही लगता है।